Dainik Athah

उप चुनावों के नतीजों का सबक: खतौली के जोश पर भारी पर भारी पड़ा रामपुर का होश

खतौली में बड़े नामों के मुकाबले रामपुर में सधे कदमों से लड़ा गया चुनाव

रामपुर में पहली बार कमल खिलाकर प्रदेश उपाध्यक्ष ब्रज बहादुर ने जीता किला

संगठन में लंबे समय तक काम करने का अनुभव भी रामपुर में आया काम

खतौली में अपनी जमीन भी नहीं बचा सके क्षेत्रीय अध्यक्ष और मुजफ्फरनगर सांसद

अशोक ओझा
लखनऊ।
इसी माह संपन्न हुए प्रदेश के तीन उप चुनावों को लेकर लगातार पार्टी नेतृत्व विश्लेषण कर रहा है। आखिर क्या कारण रहा सिटिंग सीट खतौली में हार का सामना करना पड़ा और रामपुर में पहली बार कमल खिल गया। तीनों उप चुनावों के नतीजे भाजपा के लिए जहां सबक है, वहीं यह भी कहा जा सकता है कि खतौली के जोश पर रामपुर का होश भारी पड़ा।

खतौली, रामपुर विधानसभा उप चुनाव के साथ ही मैनपुरी लोकसभा उप चुनाव के नतीजे आने के बाद से भाजपा नेतृत्व लगातार मंथन एवं विश्लेषण कर रहा है। भाजपा को सबसे बड़ा झटका खतौली में लगा। खतौली में रालोद प्रत्याशी मदन भैया के बाहरी होने को भी भाजपा भुना नहीं सकी। इतना ही नहीं उनकी छवि का लाभ भी नहीं ले सकी। बल्कि गाजियाबाद जिले के लोनी से खतौली जाकर मदन भैया ने भाजपा के पश्चिम के नेताओं को यह बताया कि उनकी अपने ही क्षेत्र में स्थिति क्या है। जबकि खतौली भाजपा के क्षेत्रीय अध्यक्ष मोहित बेनीवाल के लिए नाक का सवाल था। इसके साथ ही केंद्रीय राज्यमंत्री एवं मुजफ्फरनगर से सांसद संजीव बालियान का गृह क्षेत्र। बावजूद इसके भाजपा को खतौली में बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा। यहीं पर प्रभारी के रूप में प्रदेश महामंत्री अनूप गुप्ता को भेजा गया था। गुप्ता भी युवा है, लेकिन उनका जोश भी काम नहीं आया। भाजपा खेमा यहां पर पूर्व विधायक विक्रम सैनी के व्यवहार को हार का कारण बता रहा है, लेकिन इसके संबंध में पहले सोचा जाना चाहिये था। यहां पर जाटों के साथ ही गुर्जर समेत अन्य बिरादरी इकतरफा मदन भैया के पक्ष में नजर आई। खतौली में हार के सदमे से भाजपा तो उबर नहीं पाई है, साथ ही दोनों जाट नेताओं के नेतृत्व पर भी सवाल खड़ा हो गया है। दोनों नेता जोश में थे, लेकिन उनके जोश को रालोद मुखिया जयंत चौधरी के साथ ही मदन भैया ने ठंडा कर दिया। खतौली का असर पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश पर पड़ने की बात कही जा रही है, लेकिन आसार कम ही नजर आ रहे हैं।

दूसरी तरफ यदि रामपुर को देखें तो रामपुर को सपा के कद्दावर नेता आजम खां का अभेद्य किला माना जाता है। इस बार जिस प्रकार आजम खां ने रामपुर को प्रतिष्ठा का सवाल बनाया था तथा अनेक मौकों पर वे भावुक हुए थे उससे कहीं भी यह नहीं लगता था कि सपा प्रत्याशी को रामपुर में हार का सामना करना पड़ेगा। सपा ने यहां से आजम खां के करीबी आसिम रजा को प्रत्याशी बनाया था। जबकि भाजपा ने आजम खां को जेल की हवा खिलाने वाले आकाश सक्सैना पर दांव लगाया था। यहां पर भाजपा ने प्रभारी के रूप में प्रदेश भाजपा उपाध्यक्ष ब्रज बहादुर को जिम्मेदारी सौंपी थी। आकाश सक्सैना की रामपुर आजम खां को लगातार दी जाने वाली चुनौती एवं ब्रज बहादुर का अनुभव भाजपा के काम आया और पहली बार रामपुर में कमल खिल गया। कमल ही नहीं खिला बल्कि आजाद भारत में यह भी पहली बार हुआ कि कोई हिंदू प्रत्याशी रामपुर में जीता हो।
ब्रज बहादुर वर्तमान में प्रदेश उपाध्यक्ष है, लेकिन वे पूर्व में पश्चिमी उत्तर प्रदेश भाजपा के सह संगठन मंत्री एवं संगठन मंत्री के दायित्वों का निर्वहन भी कर चुके हैं। इस लिहाज से उनकी काम करने की शैली भी औरों से अलग है। जानकारों के अनुसार इच चुनाव में उन्होंने हर जाति को भाजपा के साथ जोड़ने का काम तो किया ही, साथ ही इस क्षेत्र में आजम खां के विरोधी मुस्लिमों को भाजपा के पक्ष में करने में सफल रहे। यहीं कारण है कि 15 से 20 हजार के बीच मुस्लिम मत भाजपा के हिस्से में आये। रामपुर जीतने के बाद यह भी उम्मीद लगाई जा रही है कि ब्रज बहादुर का भाजपा में कद भी बढ़ा है।

मैनपुरी लोकसभा उप चुनाव को लें तो यहां पर भाजपा ने पूरी ताकत लगाई थी। लेकिन जो भी मैनपुरी जाता था बयानबाजी तक सीमित रहता था। धरातल पर यहां पर काम नहीं हुआ, जबकि सपा ने इस चुनाव के बहाने मुलायम सिंह यादव का परिवार ही एक नहीं किया, बल्कि जीत का अंतर भी पहले से बढ़ा दिया। तीनों चुनाव भाजपा के लिए यह सबक भी है कि केवल बयानों से चुनाव नहीं जीते जाते, जोश के साथ होश एवं जमीन पर काम भी करना होता है।

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