Dainik Athah

शाह का काम दौड़-दौड़ कर, मुद्दई से कराएं कवायद

राज रोग से ग्रस्त है जीडीए के अधिकारियों की कार्यशैली

अधिकारियों की टेबल पर लगा है नामांतरण की फाइलों का अंबार

मुख्य संवाददाता
गाजियाबाद
। गाजियाबाद विकास प्राधिकरण के मुखिया की कमान संभालने के बाद से ही जिलाधिकारी राकेश कुमार सिंह अधिकारियों से लेकर अभियंताओं और बाबू की नकेल कसने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। बावजूद इसके जीडीए में आम लोगों के काम की रफ्तार दो दिन चले अढ़ाई कोस से भी कम है। नामांतरण के एक मामले में आठ माह में भी मृत वारिसों का नाम संपत्ति में दर्ज न होने की फरियाद लेकर आए आवेदक का प्रकरण का निस्तारण तत्काल करने के निर्देश देने के साथ ही सिंह ने भविष्य में लापरवाही बरतने वाले कर्मचारियों एवं प्रभारियों के खिलाफ सख्त कार्यवाही की चेतावनी जारी की है।


मंगलवार को राकेश कुमार सिंह के समक्ष संजय नगर के एक आवंटी ने गुहार लगाई कि बीते आठ माह से चक्कर काटने के बावजूद प्राधिकरण के दस्तावेजों में परिजनों का नाम दर्ज नहीं किया गया है। फरियादी की शिकायत को गंभीरता से लेते हुए उन्होंने संबंधित कर्मचारी से काम की प्रगति जाननी चाही तो पता चला कि बीते छह माह से फाइल एक विभाग विशेष में कार्रवाई के लिए प्रतीक्षारत है। इस संवाददाता की जानकारी में आया है कि बीते आठ- दस माह से प्राधिकरण में नामांतरण की गिनती की फाइलों का ही निस्तारण हो सका है। इसकी मुख्य वजह प्राधिकरण में अधिकारियों की कमी का होना है। प्राधिकरण में फिलहाल दो विशेष कायार्धारी ही समस्त कार्यों का निष्पादन कर रहे हैं। अफसरों की कमी का खामियाजा संबंधित अफसरों को भी भुगतना पड़ रहा है।
संपत्तियों से संबंधित कार्य का लगभग 75 फीसदी भार महज एक विशेष कार्याधिकारी के कंधे पर है। शेष 25 फीसदी भार अधिशासी अभियंता के पास है। इन दोनों ही अफसरों के पास संपत्ति के अलावा प्रवर्तन विभाग की भी बागडोर है। जो अभियंता संपत्तियों से संबंधित मामले देखते हैं उन्हें कोर्ट कचहरी के काम भी देखने पड़ते हैं। उनका एक पैर कभी लखनऊ में होता है तो कभी प्रयागराज में। कभी एक पैर अपने प्रवर्तन जोन में होता है तो दूसरा वीआईपी मूवमेंट के दौरान प्रकाश व्यवस्था चाक-चौबंद करने में। जिस अधिकारी के पास प्राधिकरण की तीन चौथाई से अधिक संपत्तियों से संबंधित मामलों के निस्तारण की जिम्मेदारी है उनकी सेहत बीते छह माह से दुरुस्त नहीं चल रही है।
यहां यह सवाल उठना लाजिमी है कि विभिन्न पटलों पर फाइलों का अंबार क्यों नहीं लगेगा? जवाब भी यही है लगेगा ही। प्राधिकरण उपाध्यक्ष राकेश कुमार सिंह ने संजय नगर निवासी फरियादी की इस बात का संज्ञान तो लिया कि उसकी फाइल बीते छह माह से एक ही पटल पर पड़ी धूल फांक रही है। लेकिन उन्हें इस बात का भी संज्ञान लेना होगा कि फाइलों के अंबार के बीच से निकलकर चंद फाइलों के ही निस्तारण की वजह क्या है? अफसरों के कमरों में रखी अनिस्तारित फाइलें कुछ बाबुओं के लिए सोने का अंडा देने वाली मुर्गी साबित हो रही हैं। कई संबंधित बाबुओं का सीधा सा फामूर्ला है पैसा फेंको तमाशा देखो। नामांतरण के कई मामलों में फरियादी अन्य अधिकारियों के पास इस आशा से जाते हैं कि वहां उन्हें न्याय मिल जाएगा। लेकिन कई मामलों में उन्हें अधिकारियों के कक्ष में फटकार तक सुनने को मिलती है। बाबू को बुलाकर यह कैफियत कभी नहीं पूछी जाती कि फरियादी को राहत क्यों नहीं मिल रही? ऐसे ही एक मामले में इंदिरापुरम की एक महिला ने जीडीए परिसर में पुलिस बुला ली थी। बाबू पर आरोप था कि वह इंदिरापुरम की एक विशेष योजना की डेढ़ दो सौ फाइलों का निस्तारण करने के बजाए फरियादियों का मानसिक व आर्थिक शोषण कर रहा था। महीनों से अटका ऐसा ही एक प्ररकरण सोमवार की शाम को सचिव के संज्ञान में आने की भी जानकारी मिली है। लोहिया नगर की नामांतरण की फाइल को भी बाबू पिछले कई महीनों से अटकाए बैठा है।

ऐसा नहीं है कि तमाम फरियादी जीडीए में जूते चटकाते फिरते हों। कुछ रसूखदार ऐसे भी होते हैं जिन पर कुछ अफसरों की विशेष कृपा होती है। अनियमितताओं से भरपूर उनकी फाइलें तमाम आपत्तियों के बावजूद नामांतरण के लिए खास सिपहसालारों के जरिए दौड़ाई जाती हैं। वह भी तब जबकि उस फाइल को निस्तारित करने का जिम्मेदार संबंधित अधिकारी सीट पर हो और भनक तक न लगे कि पड़ोस के कक्ष में बैठे अधिकारी ने तो काम ही तमाम कर दिया। ऐसे अधिकारी के साहस को सलाम ही किया जा सकता है। जिस फाइल में संबंधित बाबू अनियमितताओं की लंबी फेहरिस्त लगा चुका हो, उसकी जांच कराने के बजाए अधिकारी फाइल को नामांतरण के लिए एक ही दिन में अग्रसर कर देते हैं। लिहाजा बाबू की मनमानी की कौन कहे? जहां अफसर ही अपने सिपाही की दलील खारिज कर चोर का साथ देने पर आमादा हो जाएं।

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