यूपी में 25 दिसंबर तक संपन्न हो जायेंगे निकाय चुनाव
पूर्व में आरक्षित सीटों का आरक्षण बदला जायेगा, दावेदारों की बढ़ी धड़कनें
अशोक ओझा
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव को लेकर उल्टी गिनती मानों शुरू हो चुकी है। उम्मीद है कि दस नवंबर तक महापौर, चेयरमैन एवं वार्डों का आरक्षण घोषित हो जायेगा। लेकिन इससे पहले ही दावेदारों की धड़कनें बढ़नी शुरू हो गई है।
इस समय प्रदेश में निकाय चुनाव की तैयारी जोरों पर चल रही है। स्थिति यह है कि शासन में नगर निकाय निदेशालय में अधिकांश कर्मचारियों एवं अधिकारियों की छुट्टियां रद्द कर दी गई। अवकाश के दिनों में भी आरक्षण संबंधी काम किया जा रहा है। शासन ने प्रदेश के सभी जिलाधिकारियों से चार नवंबर तक आरक्षण की वार्ड वार सूची मांगी है। प्रदेश के कई जिलों ने जहां सूची भेज दी है, वहीं उम्मीद है कि तीन नवंबर की शाम तक अधिकांश जिलों की सूची लखनऊ पहुंच जायेगी।
उच्चस्तरीय सूत्रों के अनुसार आठ से दस नवंबर तक सभी निकायों के आरक्षण को जारी कर आपत्तियां मांगी जायेगी। इसके लिए एक सप्ताह का समय दिया जायेगा। सूत्र बताते हैं कि 18 नवंबर के बाद कभी भी निकाय चुनाव की अधिसूचना जारी की जा सकती है। अधिक से अधिक 25 नवंबर से पहले हर हाल में चुनाव की तिथि घोषित कर दी जायेगी। पूरे प्रदेश में चुनाव 25 दिसंबर तक संपन्न करवा लिये जायेंगे। चुनाव चार से पांच चरणों में हो सकते हैं। इसका कारण यह है कि सुरक्षा बलों एवं पुलिस को एक से दूसरे स्थान पर भेजा जायेगा।
बढ़ने लगी दावेदारों की धड़कनें
अब जबकि महापौर, चेयरमैन के साथ ही पार्षदों एवं सभासदों का आरक्षण अगले सप्ताह घोषित जायेगा, लेकिन इससे पूर्व ही दावेदारों की धड़कनें बढ़ने लगी है। शासन ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि पहले से आरक्षित वार्डों तथा महापौर, चेयरमैन के आरक्षण भी पूर्व के नहीं रहेंगे। इनके आरक्षण बदले जायेंगे। ऐसे में दावेदार गणित लगाने लगे हैं कि उनका वार्ड अथवा चेयरमैन, महापौर पद का आरक्षण क्या होगा। इसी कारण उनकी रात की नींद एवं दिन का चैन गायब हो गया है।
जो आरक्षण भेजा जायेगा उसके अनुरूप ही चल रही तैयारियां
शासन के सूत्र बताते हैं कि जिलों से सूचना हर हाल में चार नवंबर तक मांगी गई है। लेकिन इसके बावजूद शासन में बैठे अधिकारियों ने जिलों से पहले ही संभावित आरक्षण को मंगवा लिया है। इसी कारण क्या आरक्षण होना इसकी फीडिंग भी अंतिम चरण में है। जिलों से औपचारिक सूचना आने के बाद बहुत कम बदलाव की उम्मीद है। इतना ही नहीं आपत्तियां मांगे जाने के बाद भी बदलाव की उम्मीद बहुत कम है।