किसके इशारे पर माफ हुआ करोड़ों का परिवर्तन शुल्क
तत्कालीन सरकार के कामकाज और नीयत पर भी उठे सवाल
आलोक यात्री
गाजियाबाद। हाईटेक सिटी के भू-परिवर्तन शुल्क के 573 करोड़ रुपए के बकाए का मामला कैग (महानियंत्रक एवं लेखा परीक्षक), शासन और जीडीए के बीच फंस गया है। प्राधिकरण के दस्तावेज बताते हैं कि हाईटेक इंटीग्रेटेड टाउनशिप हेतु प्रस्तावित भू-उपयोग मास्टर प्लान में आज भी ‘प्रतीकात्मक’ के तौर पर ही दर्ज है। ‘प्रतीकात्मक भू-उपयोग’ को परिभाषित करते हुए मास्टर प्लान आज भी यही कह रहा है ‘जिस (टाउनशिप की भूमि) पर भू-उपयोग परिवर्तन शुल्क शासन के निदेर्शानुसार देय होगा, और स्वीकृत भू-विकासकर्ता के प्रयोग के उपरांत अवशेष भूमि का उपयोग कृषि माना जाएगा। कैग के खुलासे व विजीलेंस जांच के चलते सुर्खियों में आया 573 करोड़ रुपए की वसूली का यह प्रकरण पूर्ववर्ती सरकार की नीयत और मंशा पर भी अंगुली उठाता है।
गौरतलब है कि शासन की ओर से साल 2004-05 में हाईटेक टाउनशिप योजना लागू की गई थी। जिसके तहत वेवसिटी और सन सिटी में भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए एक लाख भवन बनाए जाने का लक्ष्य तय किया गया था। योजना को मूर्त रूप देने के लिए निजी बिल्डर को किसानों से भूमि खरीद कर दी जानी थी। बिल्डर द्वारा वेव सिटी में 4494 एकड़ और सन सिटी में 4312 एकड़ भूमि पर आवासीय योजना विकसित करनी थी।
दस्तावेजों बताते हैं कि साल 2007-08 में टाउनशिप की मंजूरी के प्रपत्र प्राधिकरण को सौंपे गए थे। सूत्रों का कहना है कि तत्कालीन मास्टर प्लान के अंतर्गत योजना को मंजूरी देने के लिए जीडीए द्वारा भू-परिवर्तन (कृषि से आवासीय) शुल्क की मांग की गई थी। सूत्रों की मानें तो निजी बिल्डर द्वारा अधिगृहित भूमि के भू परिवर्तन शुल्क के निर्धारण व उसकी वसूली का मामला जीडीए, बिल्डर व शासन के बीच किसी फुटबॉल मैच की तरह महीनों चलता रहा। भरोसेमंद सूत्रों का कहना है कि टाउनशिप में चिन्हित ‘प्रतीकात्मक भू उपयोग’ को तीनों ही पक्ष अपने-अपने तरीके से परिभाषित कर रहे थे।
सूत्रों का कहना है कि बिल्डर का तर्क था कि मास्टर प्लान में दर्ज भूमि के दो ही भू-उपयोग प्रदर्शित किए गए हैं। पहला कृषि और दूसरा ‘प्रतीकात्मक’। प्रतीकात्मक दर्शाई गई भूमि पर आवासीय योजना प्रस्तावित है, लिहाजा इसका भू-उपयोग आवासीय ही माना जाए। जानकारों का कहना है कि वर्ष 2007-08 में उत्तर प्रदेश शासन की कैबिनेट ने भी ‘प्रतीकात्मक भू-उपयोग’ को आवासीय मान लिया था। कैबिनेट से मंजूरी के बावजूद 2005 में आए मास्टर प्लान-2021 में ‘प्रतीकात्मक’ भू-उपयोग की शर्तें आज भी यथावत मौजूद हैं।
हाईटेक योजना का विवादों से पुराना नाता है। डेढ़ दशक बाद भी किसानों के मुआवजे का मसला अभी भी संघर्ष के रूप में जारी है। बताया जाता है कि वर्ष 2014-15 में कैग ने टाउनशिप का आॅडिट किया और 2017 में अपनी जांच आख्या सौंप दी। जिसमें बिल्डर पर कथित रूप से 573 करोड रुपए की देयता दर्शाई गई थी। जानकारी में आया है कि वर्ष 2020-21 में शासन ने कैग की इस रिपोर्ट पर तत्कालीन उपाध्यक्ष से आख्या मांगी थी। अपनी आख्या में तत्कालीन उपाध्यक्ष ने शासन को अवगत करवाया था कि बिल्डर पर कथित रूप से लगभग 570 करोड रुपए की देयता है, लेकिन कैबिनेट की मंजूरी की वजह से प्राधिकरण इसे वसूलने में असमर्थ है। संज्ञान में आया है कि वर्ष 2020-21 में तत्कालीन नवनियुक्त उपाध्यक्ष द्वारा शासन को भेजी आख्या को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था। जिसके बाद अब इस मामले की जांच विजिलेंस को सौंपे जाने के बाद भू-परिवर्तन शुल्क की वसूली का मामला एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है।
बहरहाल सवाल यह उठता है कि यदि भू-उपयोग परिवर्तन शुल्क कैबिनेट की मंजूरी की वजह से नहीं वसूला जा सका, तो दोषी कौन है? इस पूरे प्रकरण का दूसरा अहम पहलू यह है कि 25 मार्च 2021 को आयोजित कैबिनेट बैठक में इस टाउनशिप की समीक्षा के बाद शेष कार्यो को जल्द पूर्ण करवाने पर सहमति बनी थी। तब तक कैबिनेट के संज्ञान में भी 573 करोड रुपए की वसूली का मामला नहीं था क्या? अवैध वसूली व भ्रष्टाचार के लिए बदनाम प्राधिकरण के अफसर तत्कालीन सत्ता के करीबी बिल्डर को अपनी कलम से इतना बड़ा लाभ पहुंचा सकते थे क्या? अब जबकि यह प्रकरण जांच के लिए विजिलेंस के पास है तो क्या इस जांच एजेंसी के हाथ इतने लंबे हैं कि वह असल दोषियों के गिरेबान तक पहुंच जाएं?