सीबीआई का खौफ क्यों सता रहा है जीडीए के पूर्व अधिकारियों को
सुरेन्द्र कौशिक और अजय त्यागी को किसने किया था दोषमुक्त
आलोक यात्री
गाजियाबाद। लंबे अरसे से बोतल में बंद स्वर्ण जयंती पुरम आवासीय योजना के भूखंड घोटाले का जिन्न बोतल से बाहर आ चुका है। जांच के नाम पर एक दशक से फुटबॉल खेल रहे विभिन्न महकमों को लगी उच्च न्यायालय की फटकार के बाद यह प्रकरण अब प्याज के छिलकों की तरह परत दर परत उघड़ रहा है। न्यायालय में 28 जुलाई को होने वाली सुनवाई को लेकर प्राधिकरण के उन अफसरों की जान भी सांसत में है जिन्होंने जांच में विलंब करने के अलावा संलिप्तता के बावजूद अपनी ही कलम से कुछ कर्मचारियों को दोष मुक्त कर दिया था इसके अलावा जीडीए अधिकारियों की बड़ी चिंता यह है कि अब तक की कार्यवाही से नाखुश न्यायालय में यह प्रकरण जांच के लिए यदि सीबीआई के सुपुर्द कर दिया तो वैशाली और इंदिरापुरम में हुए घोटालों के गड़े मुर्दे भी कब्र से बाहर आ जाएंगे।
गौरतलब है कि पिछले दिनों उच्च न्यायालय में सुनवाई के दौरान पटल पर रखी गई जांच आख्या से उच्च न्यायालय ने नाखुशी जताते हुए राज्य सरकार, जीडीए और पुलिस महकमे को फटकार लगाते हुए इस बात के संकेत दिए थे कि या तो तथ्य पूर्ण जांच पटल पर रखी जाए अन्यथा यह मामला जांच के लिए सीबीआई को सौंप दिया जाएगा। न्यायालय द्वारा सीबीआई की संस्तुति के मद्देनजर तीनों ही महकमे हरकत में आ गए। तीन दिन पहले ही पूर्व सेवानिवृत्त मुख्य लिपिक जगदीश शर्मा और पूर्व डाटा आॅपरेटर अजय त्यागी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। वहीं अन्य आरोपी कर्मचारियों सुरेंद्र कौशिक, दीपक तलवार, राम चरित बिंद सहित कई अन्य की गिरफ्तारी की कोशिश जारी है।
यहां एक महत्वपूर्ण तथ्य और गौरतलब है। बताया जाता है कि गिरफ्तार कर जेल भेजे गए पूर्व डाटा आॅपरेटर अजय त्यागी और आरोपियों में शामिल सुरेंद्र कौशिक को तत्कालीन जीडीए उपाध्यक्ष और एक मौजूदा उच्च अधिकारी के स्तर पर इसी प्रकरण में की गई आंतरिक जांच के बाद दोषमुक्त घोषित किया जा चुका है। यह समझ से परे है कि यदि अजय त्यागी और सुरेंद्र कौशिक विभागीय स्तर पर दोषमुक्त हो चुके हैं तो इनकी गिरफ्तारी का क्या औचित्य है?
गिरफ्तार किए गए अजय त्यागी की जमानत याचिका पर कल सोमवार को सनवाई होनी है। बताया जाता है कि अन्य आरोपियों की ओर से भी अदालत में अग्रिम याचिका दायर की गई है। जिस पर अगस्त के पहले सप्ताह में सुनवाई की संभावना है। सूत्रों का कहना है कि इस प्रकरण में अजय त्यागी को यदि जमानत मिल जाती है तो अन्य आरोपियों को भी राहत मिल सकती है।
न्यायालय के कठोर रुख की एक वजह यह भी बताई जाती है कि कमिश्नर स्तर पर की गई जांच में तत्कालीन उपाध्यक्ष समेत तीन आला अफसरों को दोषमुक्त कर निचले स्तर के ही कर्मचारियों की गर्दन ही फंसाई गई थी। यह कार्रवाई हाथी की जगह मच्छर मारने जैसी थी। विशेषज्ञों का कहना है कि मामले में अब की जा रही रफुगिरी इस बात का संकेत है कि जांच के दायरे से बाहर किए गए यह अधिकारी भी अब जांच के दायरे में आ जाएंगे। बहर हाल न्यायालय की फटकार के बाद पुलिस और गाजियाबाद विकास प्राधिकरण के टाइपिस्टों की अंगुलियां टाइपराइटर पर घंटों के हिसाब से थिरक रही हैं। कल यानि सोमवार को प्राधिकरण द्वारा अब तक की जांच आख्या राज्य सरकार को सौंपी जाने की उम्मीद है। 28 जुलाई को होने वाली सुनवाई का खौफ प्राधिकरण में साफ महसूस किया जा सकता है।