सोमवार का दिन उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्पकर सिंह धामी के लिए खास रहा। 21 वर्ष पुराने इस राज्य में एक ही दिन में कई कीर्तिमान ध्वस्त हो गये तथा धामी के नाम पर फिर से मुख्यमंत्री के लिए मुहर लग गई। उत्तराखंड के इतिहास में अब तक कोई भी दल लगातार दूसरी बार लगातार सत्ता में नहीं आया। यह परंपरा भी इस बार ही टूटी। इसके साथ ही लगातार दूसरे कार्यकाल के लिए इस युवा चेहरे पर सभी ने विश्वास जताया। वह भी तब जब मुख्यमंत्री रहते हुए धामी खुद चुनाव हार गये हों। लेकिन यदि देखा जाये तो पूरा चुनाव ही मोदी एवं धामी के चेहरे पर लड़ा गया था। धामी ने अपने छोटे से कार्यकाल में उत्तराखंड के लोगों के दिल में जगह बनाने का काम किया। अपने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नक्शे कदम पर चलते हुए धामी चुनाव के अंतिम दिन तक बगैर रूके, बगैर थके उत्तराखंड को देश का सिरमोर बनाने में लगे रहे। उनकी काम करने की कार्यशैली के साथ ही जिस प्रकार उन्होंने उत्तराखंड को संवारने का काम किया वह किसी और के बस की बात नहीं थी। इसके साथ ही वरिष्ठ नेताओं के साथ जिस प्रकार उनका तालमेल था उसने उस परंपरा को भी ध्वस्त किया जब किसी भी मुख्यमंत्री के ऊपर वरिष्ठों के हमले होते थे। उन्होंने किसी को कोई मौका नहीं दिया कि उनसे कोई नाराज हो। बताया तो यह भी जाता है कि वरिष्ठों की बात सुनने के लिए उन्होंने अपने अधीनस्थों को स्पष्ट रूप से निर्देश दिये हुए थे। इसके साथ ही वे खुद भी समय समय पर वरिष्ठों से सलाह कर आगे की रणनीति बनाते थे। यदि भाजपा के उत्तराखंड के अब तक के कार्यकाल को देखें तो वे पहले मुख्यमंत्री है जिनके ऊपर किसी भाजपा नेता को आरोप लगाने का अवसर नहीं मिला। यहीं कारण है कि उनकी सभी राह आसान होती गई। धामी के लिए कहना चाहिये कि वे हारकर भी जीत गये। अब एक बार फिर वे जनता की उम्मीदों पर खरा उतरेंगे तथा तीर्थों के इस प्रदेश में आने वाले याद रखें कि उत्तराखंड में कैसी व्यवस्थाएं है।
Manthan….. Manthan….. Manthan…..