मंगलवार का दिन वाराणसी के पुलिस- प्रशासन के लिए ठीक नहीं रहा। लेकिन इस घटना ने एक बात फिर साबित कर दी है कि विपक्ष में चाहे जो हो उसके निशाने पर पुलिस व प्रशासन के अधिकारी ही रहते हैं। इस दिन ईवीएम ले जाते हुए एक ट्रक को सपा कार्यकर्ताओं ने पकड़ लिया। फिर क्या था ऐसा हंगामा शुरू हुआ कि प्रदेश ही नहीं देश की राजधानी तक के फोनों की घंटियां घनघना उठी। पूरा पुलिस- प्रशासन रात भर सड़क पर रहा। बुधवार तड़के जाकर मामला शांत हो पाया। इस घटना के बाद विपक्षी दल ने वाराणसी के डीएम के साथ ही पूरे प्रशासन को निशाने पर ले लिया। हालांकि नीचे के अधिकारियों से गलती तो हुई ही थी। उन्हें सभी प्रत्याशियों को बताकर ईवीएम ले जानी चाहिये थी। लेकिन जिस प्रकार इस मामले में लापरवाही हुई उसकी सजा वहां के एडीएम को मिल गई। लेकिन इसको लेकर प्रशासनिक अधिकारियों पर धांधली करने के आरोप कहां तक सही है। जिस प्रकार अधिकारियों पर आरोप लगाये जाने की परंपरा शुरू हुई है उससे अधिकारियों एवं राजनीतिज्ञों में मतभेद बढ़ेंगे जो ठीक नहीं है। जब चुनाव होता है उस समय अधिकारियों के लिए सत्ता- विपक्ष एक समान हो जाता है। वाराणसी में जिस डीएम पर सपा ने आरोप लगाया कभी वे अखिलेश यादव के भी खास थे। 2014 के चुनाव को याद कीजिये उस समय सपा के प्रिय प्रांजल यादव वाराणसी के डीएम होते थे। लेकिन चुनाव की रार में उनको भी निशाने पर ले लिया गया था। चुनाव की प्रक्रिया पर उंगली उठाना एक प्रकार लोकतंत्र पर ही उंगली उठाना है। यह परिपाटी बंद होनी चाहिये। वह उंगली चाहे भाजपा उठाये, सपा उठाये अथवा कोई अन्य। विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में लोकतंत्र का चीर हरण यहीं नेता करते हैं जो लोकतंत्र के कारण ही सभासद से लेकर प्रधानमंत्री तक बनते हैं। इसको लेकर सभी को विचार करना होगा।