… पुलिसकर्मी कायदे में रहेंगे तो फायदे में रहेंगे
एक कहावत है कि जब रक्षक ही भक्षक बन जाए तो फिर समाज को कौन बचाएगा? यह कहावत इन दिनों पुलिस विभाग पर चरितार्थ हो रही है। पिछले एक सप्ताह के दौरान गाजियाबाद के पुलिस थानों में एक के बाद एक पुलिस उप निरीक्षक और कई सिपाहियों की गिरफ्तारी हो चुकी है। इन सभी पर रिकवरी करने या समझौता कराने के नाम पर पीड़ित से वसूली करने के गंभीर आरोप हैं। अक्सर छोटी-छोटी सी उपलब्धियों को पुलिस मीडिया व्हाट्सएप ग्रुप पर शेयर करने वाले अफसर विभाग की बदनामी को छिपाने में इस कदर मशगूल रहे कि वह यह बात भी भूल गए कि मीडिया से कुछ भी छुपाना संभव नहीं है। पोल तो आखिर देर सबेर खुलने ही है, इसलिए जरूरत है पुलिसकर्मियों के कायदे में रहने की, क्योंकि कायदे में रहेंगे तो फायदे में रहेंगे।
कुछ मेरे पास छोड़ा हो तभी तो खर्च करूं…
गाजियाबाद में प्रथम चरण में विधानसभा भले ही हो चुके हैं किंतु प्रतिदिन राजनीतिक दलों में मतदान और प्रत्याशियों की चर्चा बनी रहती है। ऐसे ही एक साइकिल वाली पार्टी के कार्यकर्ता से जब उनके प्रत्याशी के जीत का और चुनाव के माहौल की जानकारी अन्य व्यक्ति ने ली तो कार्यकर्ता ने बताया कि भले ही पार्टी ने प्रत्याशी को चुनाव लड़ने के लिए पैसे दे दिए हैं, फिर भी किसी कार्यकर्ता ने उससे कुछ अपेक्षा की या कहीं चुनाव हित में खर्चे के लिए कहा तो प्रत्याशी का एक ही जवाब होता था जब जिले और महानगर के बड़े पदाधिकारी ने जब कुछ मेरे पास छोड़ा हो तभी तो खर्च करूं! अब यह समझ में नहीं आता चुनाव आने से पहले चुनाव संबंधित खर्चा और कार्यकर्ताओं की अपेक्षाओं का सभी राजनेताओं को पता होता है उसके बावजूद केवल पार्टी खर्च पर ही निर्भर रहे तो कैसे लड़े होंगे ये चुनाव? फिलहाल चर्चा जोरों पर है चुनाव के बाद प्रत्याशी और संगठन के बीच जरूर अनेकों विषय पर खिंचा तान जरूर होगी।