अथाह संवाददाता
गाजियाबाद। जिलाधिकारी सहित शिक्षा विभाग के उच्चतम अधिकारियों एवं बेसिक शिक्षा अधिकारी ने भी जरुरतमंद विद्यार्थियों के प्रति उदासीनता दिखाते हुए निजी स्कूलों द्वारा ईडब्ल्यूएस कोटे में भर्ती न होने पर चुप्पी साध रखी है। इस अहम मुद्दे सहित शिक्षा के बढ़ते व्यापारिकरण पर रोक, देश एवं प्रदेश के सरकारी स्कूलों को बेहतर करने की आवाज उठाने, निजी स्कूलों की मनमानियों पर अंकुश लगाने की मांग को प्रखरता से उठाने वाली गाज़ियाबाद पेरेंट्स की आवाज और आगाज को नजरअंदाज क्यों किया जाता है, यह जाँच का विषय हो सकता है।
यदि प्रदेश सरकार, शासन , प्रशासन मिलकर शिक्षा माफ़िया पर अंकुश लगाने की ठान ले तो निश्चित ही शिक्षा के बढ़ते व्यापर पर अंकुश लगाया जा सकता है लेकिन फिलहाल तो यह लगता कि शिक्षा पर प्रश्न सुनने का मन ही नहीं है और शिक्षा के अहम मुद्दे पर कुछ न सुनना पड़े तो इसके लिये जिलाधिकारी ने अपने आधिकारिक ट्विटर से जीपीए के ट्विटर हैंडल को ब्लॉक कर रखा है।
जीपीए के प्रवक्ता विवेक त्यागी का कहना है कि यह कृत्य न केवल आश्चर्य जनक है। साथ ही सामाजिक संगठनों की अवहेलना कर प्रशासन द्वारा कर्तव्यनिष्ठा से पीछे हटकर पीठ दिखाने जैसा है।
बता दें कि जब हम भी dm_ghaziabad नामक ट्विटर हैंडल पर झांकने गये तो पता चला गाज़ियाबाद जिलाधिकारी केवल चुनाव तक ही सक्रिय थे। 10 फ़रवरी के बाद से सोशल मीडिया से नदारद क्यों? चुनाव के बाद सब काम की छुट्टी? या सोशल मीडिया तब तक ही आवश्यक थी जब तक गाज़ियाबाद में चुनाव हो रहे थे। या यह समझें हाथी के दांत दिखाने के लिये कुछ और खाने के लिए कुछ और? यह प्रश्न उठता है और जनता के सेवकों को इसका उत्तर शासन को, जनता को, और गाज़ियाबाद पैरेंट्स असोसिएशन जैसे संगठनों को देना चाहिए।
इस मामले में जिलाधिकारी गाजियाबाद राकेश कुमार सिंह ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि शासन की ओर से ऐसा कोई आदेश नहीं है कि संबंधित अधिकारी का ट्विटर या सोशल मीडिया अकाउंट होना चाहिए। यह अकाउंट हैंडल करने वाले के ऊपर है कि वह किसे फॉलो करें या ना करें। रही बात अकाउंट के एक्टिवेट रहने की तो यूक्रेन से संबंधित ट्वीट उनके अकाउंट से रिट्वीट किए गए हैं। उन्होंने कहा कि मैं किसी जीपीए को नहीं जानता और ना ही मेरी ओर से किसी का कोई टि्वटर हैंडल ब्लॉक किया गया है।