बसपा छोड़कर भाजपा में आये कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य का भाजपा से मोहभंग हो गया, वह भी मात्र पांच वर्ष में। भाजपा ने स्वामी को कैबिनेट मंत्री से नवाजने के साथ ही उनकी पुत्री को भी लोकसभा में भेजा। उनके बेटे को भी टिकट दिया गया था। लेकिन इन सब के वाजूद स्वामी भाजपा से विदा हो गये। भारतीय राजनीति में राम विलास पासवान को मौसम वैज्ञानिक माना जाता था। लेकिन अब यहीं उपाधि स्वामी प्रसाद को दी जा रही है। इस उपाधि को क्या वे बरकरार रख पायेंगे इसका पता तो दस मार्च को ही लगेगा। लेकिन वे भाजपा सरकार में खुद को असहज महसूस कर रहे थे। असहज इसलिए कि खुल कर काम करने की आजादी शायद भाजपा सरकार में उन्हें नहीं मिल सकी। उन्हें ही क्या शायद ही किसी मंत्री को मिल पाई हो। यह दर्द तो पार्टी के विधायकों का भी है। जिनकी पांच वर्ष के दौरान अदने से अफसर ने भी नहीं सुनी। यहीं दर्द अब छलक कर बाहर आ रहा है। इसी दर्द के चलते एक बड़ा ब्राह्मण चेहरा भी भाजपा को अलविदा कह दे तो कोई बड़ी बात नहीं होगी। यह ब्राह्मण कैबिनेट मंत्री भी खुलकर काम नहीं कर सके। जिस प्रकार स्वामी प्रसाद बड़ा ओबीसी चेहरा है उसी प्रकार यह ब्राह्मण नेता भी बड़ा चेहरा है। यदि पार्टी ने समय रहते डैमेज कंट्रोल नहीं किया तो कुछ झटके और भी लग सकते हैं। इसके लिए समय का इंतजार करना होगा।