प्रहलाद वर्मा
नई दिल्ली। अपनी उपेक्षा से नाराज चल रहे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद अपनी पार्टी को अलविदा कह नयी पार्टी का गठन करेंगे। यह कार्य वे जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव की घोषणा होने के पहले ही करेंगे। चुनाव में वे मुख्यमंत्री का चेहरा खुद होंगे। कांग्रेस से अलग होने की प्रारंभिक प्रक्रिया भी गुलाम नबी ने शुरू कर दी है। पहले उन्होंने अपने समर्थकों से कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दिलवाया। समर्थकों के इस्तीफे के बाद वे कांग्रेस की प्रतिक्रिया देख रहे हैं लेकिन उधर से अभी कोई प्रतिक्रिया मिली नहीं है, न ही गुलाम नबी और न ही उनके समर्थकों को मनाने की कोई कोशिश ही हुई है। कांग्रेस के इस रवैये को देखकर समर्थकों और खुद गुलाम नबी आजाद का गुस्सा और बढ़ा है।
दरअसल, आजाद की कांग्रेस से नाराजगी इसलिए भी बढ़ी है कि जम्मू-काश्मीर राज्य का कांग्रेस का अध्यक्ष गुलाम अहमद मीर को नियुक्त करते समय गुलाम नबी आजाद से कोई सलाह नहीं ली गई। इस मामले में उन्हें पूरी तरह उपेक्षित किया गया।
गुलाम नबी आजाद से कांग्रेस हाईकमान उस समय से नाराज है जब कांग्रेस की दुर्दशा के लिए पार्टी के जिन करीब तीन दर्जन नेताओं ने अपने हस्ताक्षर से युक्त पत्र हाईकमान को लिखा था। पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में गुलाम नबी आजाद भी थे। पत्र पर जिन-जिन नेताओं ने हस्ताक्षर किए उनसे कांग्रेस हाईकमान आज भी बेहद नाराज है। जब हाईकमान ही नाराज है तब किस नेता की इतनी हिम्मत है कि इन नेताओं का हालचाल ले। ऐसे नेताओं में आजाद के अलावा कपिल सिब्बल, आनंद शर्मा जैसे नेता शामिल हैं। ये सभी नेता कांग्रेस में उपेक्षित चल हैं। इनमें से अधिकांश नेताओं को पार्टी की बैठकों में नहीं बुलाया जाता है और कई नेता तो ऐसे हैं जिन्होंने पार्टी की बैठकों में जाना खुद बंद कर दिया है। जब पार्टी की बैठक होती है तब कयास लगाए जाते हैं कि फलां नेता बैठक में आएगा कि नही। ऐसे नेताओं का बैठक में आना और जाना दोनों ही खबर बन जाती है।
जम्मू-कश्मीर विधानसभा का चुनाव जल्दी ही होने वाला है ऐसे में गुलाम नबी समर्थक नेताओं का पार्टी के महत्वपूर्ण पदों से इस्तीफा देना जम्मू-कश्मीर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गुलाम अहमद मीर के बहाने पार्टी हाईकमान के खिलाफ विद्रोह माना माना जा रहा है। उधर, यहां कांग्रेस के नेताओं ने इसे पार्टी का आन्तरिक मामला बताकर हाईकमान के प्रति किसी तरह की नाराजगी से इनकार किया है।
जिन नेताओं ने जम्मू-कश्मीर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गुलाम अहमद मीर के खिलाफ आवाज बलंद की है उनका आरोप है कि मीर का दामन दागदार है। कश्मीर में कुख्यात सेक्स स्कैंडल में मीर के शामिल होने के आरोप के अपराध में उन्हें 2005 में 12 महीने जेल की सजा हुई थी। जहां जम्मू के कांग्रेस नेता इस तरह के आरोप लगा रहे हैं वहीं कश्मीर के वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं का कहना है कि पूर्व मंत्रियों और विधायकों ने जम्मू-कश्मीर में पार्टी के मामलों के बारे में उनका पक्ष नहीं सुना जिसके विरोध में पदों से सामूहिक इस्तीफा दिया गया है। इस्तीफे को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष सोनिया गांधी को भेजा गया है। उन्हें संबोधित इस्तीफे की कापी को राहुल गांधी, जम्मू-कश्मीर के कांग्रेस संगठन के प्रभारी सचिव रजनी पाटिल को भी भेजी गई है।
जिन प्रमुख नेताओं ने पार्टी से इस्तीफा दिया है, उनमें जुगल किशोर शर्मा, जीएम सरूरी, बिकार रसूल, डॉ मनोहर लाल शर्मा, गुलाम नबी मोंगा, नरेश गुप्ता, सुभाष गुप्ता, अमीन भट, अनवर भट, इनायत अली और अन्य शामिल हैं. पूर्व उप मुख्यमंत्री तारा चंद गुलाम नबी आजाद के समर्थक नहीं हैं। इन्हें छोड़कर, जम्मू-कश्मीर प्रदेश कांग्रेस में सभी आजाद समर्थकों ने पार्टी के पदों से इस्तीफा दे दिया है।
इस्तीफे में कहा गया है कि गुलाम अहमद मीर की अध्यक्षता में कांग्रेस विनाशकारी स्थिति की ओर बढ़ रही है और आज तक पूर्व मंत्री, विधायक, एमएलसी, प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पदाधिकारियों सहित कांग्रेस के लगभग 200 से अधिक शीर्ष नेता, जिलाध्यक्षों और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्यों ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। कुछ नेता तो वहां के विभिन्न दलों में शामिल भी हो गए हैं। कई गलाम नबी आजाद के रुख का इंतजार कर रहे हैं।
आजाद के समर्थकों का कहना है कि कुछ भ्रष्ट और चापलूस नेताओं ने प्रदेश कांग्रेस कमेटी पर कब्जा कर लिया है। वे अपनी मनमाने तरीके से काम कर रहे हैं। वे अपने आगे किसी की भी नहीं सुनते। यहां तक कि वे वरिष्ठ नेताओं और विधानसभा सदस्यों, विधानपरिषद के सदस्यों की उनके ही जिलों में बगैर उनसे किसी सलाह किए बिना पार्टी के महत्वपूर्ण पदों का बंदरबांट कर लिथा है। इसी का नतीजा है कि कांग्रेस पार्टी प्रदेश में हुए लोकसभा, जिला विकास परिषदों, क्षेत्र विकास परिषदों (बीडीसी), पंचायत और शहरी स्थानीय निकायों के चुनाव बुरी तरह से कांग्रेस हार गई। यही नहीं प्रदेश में पार्टी एक भी परिषद नहीं बना सकी। इन नेताओं ने हाईकमान से कहा है कि गुलाम अहमद मीर भी लोकसभा चुनाव हार गए थे, उनके बेटे को भी पराजय हाथ लगी थी।
आजाद समर्थक नेताओं को मलाल है किने दावा उनके कई हाईकमान को इनकी जानकारी देने के बावजूद उनकी बात सुनी ही नहीं गई। बातचीत के लिए हाईकमान से समय मिलना तो दूर की बात है। उनकों यह भी मलाल है कि जिन लोगों ने प्रदेश कांग्रेस को हाईजैक कर लिया है उनके कामकाज के कारण कांग्रेस पार्टी के मतदाता सोचनीय स्थिति तक बेहद कम हो गए हैं। इसका ऐसा खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ेगा जिसकी कभी भरपाई नहीं हो सकती।
जम्मू-कश्मीर में किसी भी समय चुनाव की घोषणा संभावित है। बावजूद इसके गुलाम अहमद मीर और न ही अन्य कोई वरिष्ठ नेता उनकी बात सुनने को तैयार है। आजाद समर्थक नेता केन्द्रीय नेतृत्व के ऐसे व्यवहार को खुद और गुलाम नबी आजाद के प्रति शत्रुतापूर्ण व्यवहार मान रहे हैं। उनका यह भी मानना है कि इसी तरह का रवैया अपनाकर उन्हें पार्टी से इस्तीफा देने को मजबूर किया गया है।
जो भी हो जम्मू-कश्मीर में कान्ग्रेस पार्टी की जो स्थिति है और जिस तरह से पार्टी सभी चुनाव हार चुकी है, उस स्थिति में गुलाम नबी आजाद नई प्रादेशिक पार्टी का गठन कर अलग चुनाव लड़ते हैं तो कांग्रेस पार्टी का भारी नुकसान होना तय है।