Dainik Athah

मंथन

… यहीं होना था तो फिर क्यों करवाई सरकार की फजीहत

लखीमपुर खीरी चाहे शांत हो चला हो। लेकिन राजनीतिक पर्यटन पर निकले नेता इस शांत इलाके को शांत नहीं देखना चाहते। इतना ही नहीं प्रदेश की नासमझ अफसरशाही भी अपने कर्मों से इसे शांत होते नहीं देखना चाहती।

लखीमपुर में सबकुछ मैनेज होने के बाद पता नहीं किसकी समझदारी ने काम किया और प्रदेश सरकार को सुझाव दे डाला कि प्रियंका को लखीमपुर नहीं जाने देना। श्रीमती वाड्रा को पीएसी गैस्ट हाऊस में गिरफ्तार कर रख लिया गया।

बस मृत प्राय: कांग्रेस को संजीवनी देने का अच्छा काम कर डाला। पंजाब से लेकर छत्तीसगढ़ तक के सीएम उड़नखटोलों में बैठकर यूपी की राजधानी के लिए कूच करने लगे। इसके साथ ही हाशिये पर चल रहे राजस्थान के पूर्व डिप्टी सीएम भी स्वामी भक्ति दिखाने के लिए सड़क नापने लगे। इतना कुछ होने के बाद आखिरकार सरकार की आंख खुली।

भाई के आने से पहले बहन को रिहा कर दिया गया और भाई- बहन की जोड़ी लखीपुर पहुंच गई। दोनों कांग्रेसी सीएम ने मृतक किसानों के साथ ही पत्रकार के आश्रितों के लिए तिजोरी का मुंह खोलकर 50- 50 लाख रुपये देने की घोषणा भी कर दी। यदि नासमझ अफसरशाही पहले ही श्रीमती वाड्रा को लखीमपुर घुमा लाती तो शायद इतनी फजीहत नहीं होती।

लेकिन उन लोगों का क्या करें जो मृत कांग्रेस में जान फूंकने के प्रयास में जुटे थे। हो सकता है कि प्रदेश सरकार के इशारे पर ऐसा हुआ हो। वह भी साइकिल वाले भइया जी को डाउन करने के लिए। लेकिन जो भी हुआ उसे उचित नहीं ठहराया जा सकता। प्रियंका वाड्रा को एक बार पहले भी रोका गया था। लेकिन वे अंत में पीड़ित परिवार के पास पहुंच ही गई थी।

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