फोन की रिकॉर्डिंग सुनते ही पानी- पानी हो गए सिफारिश करने गए नेता
पिछले दिनों देश की सबसे पुरानी पार्टी के महानगर अध्यक्ष को अचानक बदल दिया गया। हालांकि अनेकों बार महानगर अध्यक्ष बदलने के लिए पार्टी के कार्यकतार्ओं ने गुहार लगाने के साथ ही शिकायत भी की थी। बदलाव के बाद अपने समर्थकों के साथ यह पूर्व महानगर अध्यक्ष पार्टी के बड़े कार्यालय दिल्ली जा पहुंचे। यहां पार्टी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी से अपने हटाए जाने का कारण पूछा। वे कारण तो नहीं बता पाए, लेकिन पार्टी के एक अन्य पदाधिकारी को फोन पर बात कर उनके आने की सूचना दी तो उस पदाधिकारी ने सभी को अपने यहां बुला लिया। पूर्व महानगर अध्यक्ष सहितसभी लोग दूसरे पार्टी पदाधिकारी के पास पहुंचे और उनसे पार्टी में हटाए जाने का कारण पूछा। उन्होंने अपनी कार्य पद्धति के बारे में चर्चा की तो जवाब था कार्य पद्धति के मामले में तो प्रदेश में नंबर वन हो … लेकिन तुम्हारी जुबान का क्या करें। यह सुनते ही सभी एक दूसरे का चेहरा देखने लगे। तभी पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारी ने मोबाइल निकाल कर उन्हीं के द्वारा बोली गई बातों की रिकॉर्डिंग ने सुना दी। रिकॉर्डिंग सुनते ही समर्थन में गए पार्टी के पदाधिकारी शर्म से पानी पानी हो गये और सोचने लगे बुरे फंसे जो पूर्व महानगर अध्यक्ष के समर्थन में आए। दरअसल रिकॉर्डिंग में सभी वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ इन महाशय जी ने अनेकों अपशब्दों का प्रयोग किया था जिसको सुनने के बाद उनका पद से जाना निश्चित ही था।
मलाईदार थाना न मिलने की टीस
मलाईदार सीटों पर रहने वाले अधिकारियों को सब्जी रोटी कम ही पसंद आती है। उनकी हमेशा यही मंशा रहती है कि वह मेन स्ट्रीम में रहे। लेकिन यह जरूरी नहीं कि हर समय वक्त एक सा रहे। इस समय कुछ ऐसे ही हालात गाजियाबाद शहर के एक थाने में तैनात इंस्पेक्टर के भी हैं। यह महाशय उपनिरीक्षक रहते हुए और फिर निरीक्षक रहते हुए भी शहर के मलाईदार थानों में तैनात रहे। लेकिन एकाएक चली तबादलों की आंधी में उन्हें ऐसे थाने में तैनाती मिल गई है, जो शहर से हटकर जंगल में बना हुआ है। इसकी टीस भी वह अपने परिचितों और विभाग के अधिकारियों के सामने जाहिर करते रहते हैं। लेकिन मजबूरी यह है कि बमुश्किल पटरी पर आई उनकी गाड़ी की वजह से उन्हें फिलहाल यहीं पर संतोष करना पड़ रहा है।
– … तीन साल वालों की रवानगी आखिर कब होगी
विधानसभा चुनाव से पहले जिलों में तीन साल से जमे अफसरों की रवानगी होनी है। पुलिस विभाग में कुछ को छोड़कर रवानगी का काम पूरा हो चुका है। लेकिन प्रशासन में यह काम अधूरा है। जिले में कई थांबेदार (एसडीएम) ऐसे हैं जो अपना तीन साला पूरा कर चुके हैं। लेकिन हद है कि रवानगी के आदेश भी नहीं आये। अब क्या करें न तो इनका काम में मन लग रहा है। न कुछ करने को दिल कर रहा है। दूसरी तरफ ऐसे अफसर भी है जो बाट जोह रहे हैं कि तीन साला वालों की रवानगी हो तो उनका भी नंबर थांबेदारी पर लगे। जिले के मुखिया भी शायद नियुक्ति विभाग के आदेशों का इंतजार कर रहे हैं कि इनकी रवानगी के आदेश हो तभी एक्सट्रा में बैठे थांबेदारों को तैनाती दी जाये। कहीं जाते जाते यह न कहने लगे कि नियुक्ति विभाग के आदेशों का इंतजार भी बॉस ने नहीं किया। उधर सरकार है कि तबादलों की मियाद बढ़ाती जा रही है। अब अक्टूबर के अंत तक सभी तबादले पूर्ण करने को कहा है।