पांच अगस्त का दिन प्रदेश के राजनीतिक दलों के लिए महत्वपूर्ण रहा। एक तरफ जहां पूरी भाजपा गरीबों एवं असहायों को मुफ्त राशन वितरण में लगी थी, वहीं दूसरी तरफ सपा मुखिया टीपू की दौड़ती साइकिल ने सत्ताधारी दल के रणनीतिकारों को बेचैन कर दिया। समाजवादी चिंतक जनेश्वर मिश्र की जयंती पर आयोजित सपा की साइकिल रैली में प्रदेश की राजधानी में उमड़ी भीड़ ही ऐसी थी कि सत्ता में बैठे रणनीतिकारों के माथे पर पसीना आना स्वाभाविक था। लंबे अर्से बाद साइकिल की सवारी करने सड़क पर उतरे अखिलेश अर्थात टीपू की साइकिल को इतना समर्थन मिलेगा यह किसी ने सोचा नहीं था। मैंने कुछ दिन पहले इसी कालम में कहा था कि अखिलेश को अब सड़क पर उतरना चाहिये। यह वक्त निकल जायेगा तो फिर हाथ नहीं आयेगा। आखिरकार वे साइकिल से निकल पड़े। इतना ही नहीं प्रदेश अन्य जिलों को देखा जाये तो सपा की साइकिल शहर से लेकर गांवों की पगडंडिंयों तक दौड़ती नजर आई।
इसके साथ ही अधिकांश जिलों में भीड़ भी दिखाई दी। शायद यहीं कारण है कि देर शाम भाजपा के प्रदेश मुखिया स्वतंत्र देव सिंह ने मोर्चा संभाला तथा कहा कि जंग लगी एवं पंचर साइकिल से रेस नहीं जीती जाती। उनका यह बयान बताता है कि कहीं न कहीं भाजपा में अब टीपू सुल्तान को लेकर बेचैनी है। जिस प्रकार सपा ने साइकिल के सहारे दम दिखाया वह दम आगे भी बरकरार रह सके तभी सपा सत्ता की दौड़ में नजर आयेगी। यदि फिर से सपा मुखिया एसी में बैठ गये तो निश्चित ही अगले पांच सात तक उन्हें इंतजार करना पड़ेगा। इतना ही नहीं सपा को जिलों एवं शहरों के अपने कील कांटे भी दुरुस्त करने होंगे। अब यह तो समय ही बतायेगा कि विधानसभा चुनाव तक सपा की साइकिल दौड़ती है अथवा साइकिल खड़ी हो जाती है। साइकिल की गति बनी रही तो यह भी निश्चित है कि चुनाव में मुकाबला रोचक होगा।