जानिए जनसाधारण के लिए स्वयं श्राद्ध और तर्पण करने की विधि*शिव शंकर ज्योतिष एवं वास्तु अनुसंधान केंद्र ,गाजियाबाद ।पंडित शिवकुमार शर्मा के अनुसार इस वर्ष श्राद्ध पक्ष 7 सितंबर भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आरंभ हो रहे हैं और समापन सर्वपितृ अमावस्या 21 सितंबर को होगी।इस वर्ष श्राद्ध की एक तिथि घट गई है।

श्राद्ध तिथियां इस प्रकार हैं:
पूर्णिमा का श्राद्ध – 07 सितम्बर 2025, रविवार
प्रतिपदा का श्राद्ध – 08 सितम्बर 2025, सोमवार
द्वितीया का श्राद्ध – 09 सितम्बर 2025, मंगलवार
तृतीया का श्राद्ध – 10 सितम्बर 2025, बुधवार
चतुर्थी ,पंचमी का श्राद्ध – 11 सितम्बर 2025, गुरुवार
षष्ठी का श्राद्ध – 12 सितम्बर 2025, शुक्रवार
सप्तमी का श्राद्ध- 13 सितम्बर 2025, शनिवार
अष्टमी का श्राद्ध- 14 सितम्बर 2025, रविवार
नवमी का श्राद्ध – 15 सितम्बर 2025, सोमवार
दशमी का श्राद्ध – 16 सितम्बर 2025, मंगलवार
एकादशी का श्राद्ध – 17 सितम्बर 2025, बुधवार
द्वादशी का श्राद्ध- 18 सितम्बर 2025, गुरुवार
त्रयोदशी का श्राद्ध- 19 सितम्बर 2025, शुक्रवार
चतुर्दशी का श्राद्ध- 20 सितम्बर 2025, शनिवार
सर्वपितृ अमावस्या, पितृ तर्पण -21 सितंबर 2025, दिन रविवार
पंडित शिवकुमार शर्मा के अनुसार श्राद्ध पक्ष में एक तिथि कम हो रही है।दिनांक 13 सितंबर को षष्ठी तिथि प्रातः 7:23 बजे तक है इसके पश्चात पूरे दिन सप्तमी तिथि रहेगी । अर्थात सप्तमी तिथि का क्षय हो गया है। इसलिए 13 सितंबर को सप्तमी का श्राद्ध किया जाएगा.11 सितंबर को चतुर्थी तिथि 12:45 बजे तक है उसके बाद पंचमी तिथि आएगी। इसीलिए चतुर्थी और पंचमी का श्राद्ध 11 सितंबर को ही शास्त्र सम्मत है।इसके लिए एक शास्त्रीय वचन है-श्राद्ध बारह प्रकार के होते हैं। एकोद्दिष्ट श्राद्ध प्रतिवर्ष आश्विन मास पितरपक्ष प्रौष्ठपदी पूर्णिमा से सर्वपितृ मावस तक 16 दिन पर्यन्त किये जाते हैं। मृत्युतिथि को अपराह्न में श्राद्ध करने का शास्त्रीय विधान है- आमश्राद्धन्तु पूर्वाह्न एकोद्दिष्टन्तु मध्यमे । पारणाञ्च पराह्ने तु प्रात्तवृद्धि: /अपराह्न काले कहा जाता है। यह प्रमाण वाक्य महाभारतकाल से पहले से लिखें है ।इस पर द्विजाचार्यों को विचार करना चाहिए। आज के युग में श्राद्ध तिथि पर यजमान प्रातः काल ही पितरों के निमित्त भोजन आदि की व्यवस्था करके अपने काम पर निकल जाता है और ब्राह्मण भी दोपहर तक भोजन की प्रतीक्षा नहीं करता। व्यवहार में सभी अपनी सुविधानुसार वर्तमान तिथि में श्राद्ध की प्रक्रिया को पूरा कर देते हैं। जबकि अपराह्न काल अर्थात तृतीय प्रहर आरंभ होने पर कुतपकाल होता है ।उसमें ही श्राद्ध करने का आदेश है।इसीलिए चतुर्थी और पंचमी का श्राद्ध 11 सितंबर को ही करना चाहिए ।इसके अलावा विशेष ध्यान रखें किसौभाग्यवती महिलाएं जिनकी मृत्यु तिथि याद नहीं है , उनका श्राद्ध नवमी तिथि ( मातृनवमी )को करने का आदेश है।जिन व्यक्तियों का निधन अचानक, दुर्घटनावश अन्य स्थान पर हुआ है इनकी मृत्यु तिथि नहीं पता है ,उनका श्राद्ध चतुर्दशी को करना चाहिए।पितृ अमावस्या 21 सितंबर की है इस दिन सभी पितरों का प्रणाम करके उनके निमित्त जल चढ़ाएं ,तर्पण करें, उनका भोजन निकालें श्रद्धा पूर्वक प्रणाम करें गौ, ब्राह्मण ,विद्वानों को भोजन कराएं।जिनकी कुंडली में पितृदोष है,उनको पितृदोष की शांति , हवन , तर्पण आदि अमावस्या को करना चाहिए।
श्राद्ध करने की जनसाधारण के लिए सामान्य विधि
अपने परिवार के तीन पीढ़ियों के पूर्वजों के निमित्त उनकी वार्षिक तिथि पर श्राद्ध किया जाता है। सद्गृहस्थी को श्राद्ध अवश्य करना चाहिए ।जिससे हमें अपने पूर्वजों की कृपा प्राप्त हो सके।सबसे पहले प्रातः काल नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नानादि करके ईश्वर पूजन के पश्चात अपने पूर्वजों का स्मरण करें व प्रणाम करे औरउनके गुणों को याद करें।अपनी सामर्थ्य के अनुसार किसी विद्वान ब्राह्मण को आमंत्रित कर भोजन कराएं ।और उन्हीं से पूर्वजों के लिए तर्पण व श्राद्ध कराएं । सबसे पहले संकल्प करें। संकल्प के लिए हाथ में जल, पुष्प, और तिल अवश्य रखनी चाहिए।ॐ तत्सत्,अद्य ————-गोत्रोत्पन्न: (गोत्र बोलें) ——————- नामाऽहम् (नाम बोलें)आश्विन मासे कृष्ण पक्षे——– ———-तिथौ—————वासरेस्व पित्रे (पिता) /पितामहाय (दादा) मात्रे (माता) मातामह्यै (दादी)निमित्तम् तस्य श्राद्धतिथौ यथेष्ठं , सामर्थ्यं श्रद्धानुसारं तर्पणं/ श्राद्ध/ ब्राह्मण भोजनं च करिष्ये । इस संकल्प को हिंदी में भी बोल सकते हैं।आज—— गोत्र में उत्पन्न — मैं आश्विन महीने के कृष्ण पक्ष की—- तिथि को अपने पिता/ दादा/ माता/ दादी के निमित्त उनकी श्राद्ध तिथि पर इच्छा ,सामर्थ्य और श्रद्धा के अनुसार तर्पण ,श्राद्ध और ब्राहमण भोजन कराउंगा ।उसके पश्चात तर्पण हेतु किसी बड़े बर्तन अथवा परात में निम्नलिखित वस्तुएं डालें।शुद्ध जल ,गंगाजल ,दूध, दही और शहद ,काले तिल व कुछ पुष्प डालें।इस अवसर पर पितृतर्पण के साथ-साथ देव तर्पण और ऋषि तर्पण भी किया जाता है।सबसे पहले देव तर्पण करते हैं।सीधे हाथ के अंगूठे के नीचे कुछ दुर्वांकुर लेंगे बाहर की ओर को उनके पत्ते रखेंगे।( इसे देव मुद्रा कहते हैं)ओम् भूर्भुव: स्व:ब्रह्माविष्णुरूद्रेभ्य; तृपयामि। ऐसा बोलकर अंजुलि में कनिष्ठा उंगली की ओर से जल भरेंगे और जहां पर हमने दूब घास अंगूठे की नीचे दबा रखी है। उस और हाथ को घुमाकर बाहर निकाल देंगे।इस मंत्र से सात बार बोल कर देवों के लिए तर्पण करें।इसके पश्चात ऋषि तर्पण के लिए देव तर्पण की ही तरह 7 बार सप्तर्षियों के निमित्त तर्पण करेंगे।ओम् भूर्भुव: स्व: सप्तर्षिभ्य; तर्पयामि।इसके पश्चात उस दुर्वा घास को अंगूठे के नीचे से निकालकर पांच उंगलियों को एक साथ मिलाएंगे। इसे पितृ मुद्रा कहते हैं। उसमें दुर्वा घास दबा लेंगे।
अपने पितृ देवता के लिए सात बार तर्पण करेंगे ।ओम् भूर्भुव: स्व: पितरेभ्य: तर्पयामि।ऐसे मंत्र को बोलकर कनिष्ठा उंगली के नीचे की ओर से जल भरेंगे और हाथ को सीधा करके उंगलियों के बीच में से परात में छोड़ देंगे।पिता के लिए :ओम भूर्भुव: स्व: पित्रेभ्य: तर्पयामि।माता के लिए : ओम भूर्भुव: स्व: मात्रेभ्य:तर्पयामि।दादा के लिए : ओम् भूर्भुवः स्व: पितामहेभ्य:तर्पयामि।दादी जी के लिए:ओम् भूर्भुव: स्व: मातामहीभ्य:तर्पयामि।परदादा के लिए प्रपितामहेभ्य: बोलेंगे।वैसे तो यदि विस्तार में जाएंगे तो अपने पिता के कुल की 5 या 7 पीढ़ियों के उच्चारण करके तर्पण करते हैं और अपनी नाना पक्ष की भी पांच पीढ़ियों का उच्चारण करके तर्पण करना होता है। जो किसी विद्वान आचार्य के द्वारा ही कराया जा सकता है । जनसाधारण के लिए उपरोक्त विधि ही सबसे उपयुक्त है।।तर्पण के पश्चात अपने पूर्वज की रूचि का भोजन बनाकर थाली में रखें और 6 पूडी अथवा पराठे या रोटी रखें।उनके 6 भाग इस प्रकार करें। प्रत्येक पूडी पर जो भी वस्तुएं बनी है, सबको थोड़ा-थोड़ा रखें और उसके पश्चात उनके ऊपर से दो बार जल फेरें।एक भाग गौ बलिदूसरा भाग काक (कौवे हेतु) बलि तीसरा भाग स्वान (कुत्ते हेतु) बलि चौथा भाग पिपिलिका बलि (चींटियों हेतु) पांचवा भाग विश्वेदेवा(सभी देवताओं के लिए) और छठा भाग चांडाल बलिकौवे के निमित्त एक भाग निकालकर घर की छत पर रख दें अथवा खुले मैदान में रख दें। बाकी सभी पूडियों को गाय को खिला दें।तत्पश्चात ब्राह्मण को भोजन कराएं ब्राह्मण न मिले तो किसी धर्म प्रचारक या योग्य पात्र को खाना खिलाएं।उसके पश्चात ब्राह्मण को दक्षिणा आदि देकर विदा करें ।उनके पैर छुए उसके पश्चात स्वयं भी भोजन करें।
पंडित शिवकुमार शर्मा, ज्योतिषाचार्य एवं वास्तु कंसलटेंट ,गाजियाबाद
