Dainik Athah

सीएम योगी के प्रयास से ‘जीरो डोज’ वाले बच्चों की संख्या में आई कमी, टीकाकरण सेवाओं का विस्तार जारी

  • योगी सरकार का उद्देश्य, प्रदेश जीरो डोज से मुक्त हो और हर बच्चा स्वस्थ व सुरक्षित जीवन जिये
  • जीरो डोज से प्रदेश में पिछले आठ वर्षों में नवजात शिशुओं की मृत्युदर में आई कमी
  • सीएम योगी के निर्देश पर अभियान चला टीकाकरण सेवाओं को दूर-दराज के गांवों से लेकर शहरी बस्तियों तक पहुंचाया जा रहा

अथाह ब्यूरो
लखनऊ।
योगी सरकार नवजात शिशुओं और छोटे बच्चों को जानलेवा बीमारियों से बचाने के लिए विभिन्न अभियान चला रही है। इसी का असर है कि पिछले आठ वर्षों में नवजात शिशु मृत्यु दर में कमी दर्ज की गयी है। इसमें योगी सरकार द्वारा नवजात शिशुओं और छोटे बच्चों को जानलेवा बीमारियों से बचाने में नियमित टीकाकरण की अहम भूमिका है। डबल इंजन की सरकार द्वारा सभी बच्चों तक टीकाकरण सेवाएं पहुंचाने के लिए विशेष प्रयास किए जा रहे हैं, खासतौर पर ‘जीरो डोज’ (शून्य-खुराक ) वाले बच्चों की पहचान कर उन्हें टीकाकरण से जोड़ने पर जोर दिया जा रहा है।

टीका बच्चों के जीवन और भविष्य को बनाता है सुरक्षित
प्रमुख सचिव स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण पार्थ सारथी सेन शर्मा ने कहा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मंशा के अनुरूप प्रदेशवासियों को सस्ता और गुणवत्तापूर्ण इलाज उपलब्ध कराने के लिए लगातार आवश्यक कदम उठाये जा रहे हैं। इसी का परिणाम है कि जीरो डोज वाले बच्चों की संख्या में आई लगातार कमी राज्य के स्वास्थ्य तंत्र, सहयोगी संगठनों और समुदाय के प्रयासों को दशार्ता है। हमारा लक्ष्य है कि कोई भी बच्चा टीकाकरण से वंचित न रहे। हम टीकाकरण सेवाओं को दूर-दराज के गांवों से लेकर शहरी बस्तियों तक पहुंचा रहे हैं और समुदाय के हर परिवार को यह विश्वास दिला रहे हैं कि टीका उनके बच्चे के जीवन और भविष्य की सुरक्षा का सबसे सशक्त साधन है। हम इस दिशा में और भी तेजी से काम करेंगे, ताकि प्रदेश जीरो डोज से मुक्त हो और हर बच्चा स्वस्थ व सुरक्षित जीवन रहे।

जिन बच्चों को नहीं लगता है टीका, वो उनके विकास को करता है प्रभावित
राज्य टीकाकरण अधिकारी डॉ. अजय गुप्ता ने बताया कि देश के 11 राज्यों के 143 जिलों में वर्ष 2022 से ह्यजीरो डोज अभियानह्ण सक्रिय रूप से चल रहा है। उत्तर प्रदेश इस दिशा में अग्रणी राज्य है, जहां 60 जिलों में यह अभियान जोर-शोर से चलाया जा रहा है। इन विशिष्ट जिलों का चयन राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (एनएफएचएस-5) से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर सावधानीपूर्वक किया गया है, जिससे शून्य-खुराक वाले बच्चों की सबसे अधिक संख्या वाले क्षेत्रों के बारे में बहुमूल्य जानकारी मिली है। डॉ. सलमान, वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ के अनुसार, बिना टीका लगे बच्चों में जानलेवा बीमारियों का खतरा अधिक रहता है और यह बच्चों के विकास को भी प्रभावित कर सकता है। उनमें डिप्थीरिया, काली खांसी, टिटनेस, खसरा और पोलियो जैसी वैक्सीन से रोके जा सकने वाली बीमारियों का खतरा काफी बढ़ जाता है। ये बीमारियां न केवल बच्चों के स्वास्थ्य और कल्याण के लिए सीधा खतरा पैदा करती हैं, बल्कि व्यापक रोग उन्मूलन के प्रयासों में भी बाधा डाल सकती हैं और दीर्घकालिक विकलांगता का कारण बन सकती हैं। उदाहरण के लिए, पोलियो वायरस के कारण होने वाली एक दुर्बल करने वाली बीमारी, पोलियो मेलाइटिस, स्थायी पक्षाघात और जीवन भर सहायक देखभाल पर निर्भरता का कारण बन सकती है।

यह हैं अभियान की प्रमुख विशेषताएं
. जीरो डोज वाले बच्चों और समुदायों की पहचान
. टीकाकरण से वंचितों तक सेवाओं की पहुँच
. टीकाकरण नहीं कराने के कारणों की पड़ताल
. प्रशिक्षित स्वास्थ्य कार्यकतार्ओं की तैनाती
. समुदाय में जागरूकता और गलत धारणाओं को दूर करना

टीकाकरण कवरेज को और मजबूत करने के लिए कई नवाचार भी किए गए हैं
. अभियान को हऌड, यूनिसेफ, ॠअश्क और खरक जैसे वैश्विक संगठनों का तकनीकी और रणनीतिक सहयोग प्राप्त है।
. शहरी क्षेत्रों में सप्ताह के सातों दिन टीकाकरण सेवाएं
. व-हकठ डिजिटल प्लेटफॉर्म के जरिए गर्भवती महिलाओं और बच्चों के टीकाकरण रिकॉर्ड का डिजिटलीकरण
. फकरए ऐप से स्वास्थ्य कार्यकतार्ओं को निरंतर प्रशिक्षण
. आदर्श टीकाकरण केंद्रों की स्थापना

हर साल 28 लाख से अधिक का किया जाता है टीकाकरण
उत्तर प्रदेश में हर साल करीब 67 लाख गर्भवती महिलाओं और 57 लाख बच्चों (0-1 वर्ष) को 28 लाख से अधिक टीकाकरण सत्रों के माध्यम से टीके दिए जाते हैं। सरकार का उद्देश्य है कि कोई भी बच्चा टीकाकरण से वंचित न रहे, और हर बच्चा सुरक्षित व स्वस्थ जीवन की ओर आगे बढ़े। बता दें कि जीरो डोज वे बच्चे होते हैं जिन्हें जीवन के पहले वर्ष में कोई भी टीका नहीं मिला होता, जिससे उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है और वे डिप्थीरिया, काली खांसी, टिटनेस, खसरा और पोलियो जैसी बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं। सरकारी प्रयासों और भागीदारी संगठनों के सहयोग से इन बच्चों की संख्या में लगातार गिरावट दर्ज की गई है।
. वर्ष 2022-23 में 2.36 लाख
. वर्ष 2023-24 में 1.73 लाख
. वर्ष 2024-25 में यह घटकर 1.29 लाख


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