महर्षि वेदव्यास जी का अवतरण दिवस है गुरु पूर्णिमा
आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा अथवा व्यास पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। महाभारत और अट्ठारह पुराणों के लेखक महर्षि वेदव्यास जी का जन्मोत्सव अथवा “अवतरण दिवस” भी इस दिन मनाया जाता है।10 जुलाई कोआषाढ़ पूर्णिमा प्रातः काल सूर्योदय से रात्रि 2:06 तक रहेगी इस दिन पूर्वाषाढ़ नक्षत्र है। गुरुवार को पूर्वाषाढ़ नक्षत्र होने से धाता योग बनता है।धाता योग बहुत ही शुभ योग होता है इसमें अनेक शुभ कार्य गुरु पूजन आदि की जा सकते हैं। इस दिन पूर्णिमा का व्रत रखा जाएगा।गुरु पूर्णिमा के दिन अधिकतर व्यक्ति अपने-अपने गुरुओं की पूजा करते हैं,उनका सम्मान करते हैं और उपहार देते हैं। शास्त्रों में गुरु को ब्रह्म और विष्णु महेश से भी बढ़कर बताया गया है। कबीर दास जी कहते हैं कि *गुरु गोविंद दोउ खड़े ,काके लागू पाय*। *बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय**गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु: गुरुर्देवो महेश्वर:*। *गुरु:साक्षात् परम ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः।*यदि व्यक्ति को निस्वार्थ, निर्लोभी , सदाचारी गुरु प्राप्त हो जाए तो वह उसके जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि होती है।लेकिन आज धन की मारामारी में गुरु परंपरा का केवल निर्वहन हो रहा है। बड़े-बड़े महागुरु अपने आश्रमों में शान शौकत से रह रहे हैं।विश्व में श्रेष्ठ गुरु तो कुछ गिनती के ही बचे हुए हैं।रामकृष्ण परमहंस,महर्षि विरजानंद, समर्थ गुरु रामदास, गुरु वशिष्ठ, गुरु संदीपन आदि गुरुओं ने अपने शिष्यों को शिक्षित करके देश का और उनकी आत्मा का परम कल्याण किया था।ऐसे परम गुरु का मिलना आज के युग में बहुत ही दुर्लभ है। किंतु लोक परंपराओं के अनुसार गुरु पूर्णिमा पर गुरु पूजन की परंपराओं का निर्वहन करते जा रहे हैं।*जिन व्यक्तियों ने गुरु नहीं बनाए हैं, उनके दिव्य गुरु भगवान शिव और हनुमान जी हो सकते हैं ।उन्हें ही अपना गुरु मान करके पूजन करना चाहिए।
-पंडित शिवकुमार शर्मा, ज्योतिषाचार्य एवं वास्तु कंसलटेंट, गाजियाबाद
