- भ्रष्ट अधिकारियों व कर्मचारियों की सजा भोग रहे हैं खरीददार
- फजीर्वाड़ा करने वाले अधिकारी और कर्मचारी हो गए रिटायर
अथाह संवादाता
गाजियाबाद। रोटी, कपड़ा और मकान आम नागरिक की बुनियादी जरूरतों में शामिल हैं। महंगाई के इस दौर में आम आदमी को जहां रोटी और कपड़े के भी लाले पड़े हों, ऐसे में मकान का सपना तो दूर की बात है। पाई-पाई जमा कर बनाए गए आशियाने पर बेदखली की तलवार लटक जाए तो इससे क्रूर मजाक उसके साथ दूसरा हो नहीं सकता। ऐसा ही क्रूर मजाक स्वर्ण जयंती पुरम के उन सैकड़ों भूखंड स्वामियों के साथ हुआ है, जिन्होंने इस योजना में अपने सपने का घर बनाने की गलती की है। गाजियाबाद विकास प्राधिकरण के अफसरों के भ्रष्टाचार ने सैंकड़ों खरीददारों के सामने ऐसा संकट खड़ा कर दिया है जिसकी मिसाल पूरे देश में ढूंढ़े नहीं मिलेगी। आवासीय भूमि खरीद कर प्राधिकरण से नक्शा स्वीकृत करवा कर भवन निर्माण करवा चुके लोगों के घरों पर जीडीए की ओर से चेतावनी का बोर्ड लटका दिया गया है। यह बोर्ड कुछ उसी तरह का है जैसे किसी बेगुनाह के माथे पर लिख दिया जाए ‘मैं चोर हूं’।
गौरतलब है कि स्वर्ण जयंती पुरम के सैकड़ों भूखंड स्वामी इस कलंक के साथ अपने आशियाने में बेदखली की आशंका के बीच जीने को विवश हैं। निसंदेह चेतावनी का यह बोर्ड आशियाने के मालिक ही नहीं परिवार के हर सदस्य की छाती पर मूंग दलने जैसा है। स्वर्ण जयंती पुरम योजना में भूखंड विक्रय करना उन लोगों के लिए अभिशाप बन गया है जिन्हें जीडीए के अफसरों के भ्रष्टाचार की खबर नहीं थी। उन्हें जीडीए के अफसरों के भ्रष्टाचार की खबर तब मिली जब उनके घरों पर अदालती कार्रवाई के चलते प्राधिकरण की ओर से उनके घर और भूखंड पर चेतावनी के बोर्ड टांग दिए गए। जिसमें अंकित है कि जन सामान्य को सूचित किया जाता है कि भूखंड संख्या (जो हर भवन का अलग है), स्वर्ण जयंती पुरम, गाजियाबाद का स्वामित्व माननीय उच्च न्यायालय में विचाराधीन है। अतएव विवादित है। अत: इस भवन के खरीद फरोख्त करने, निर्माण करने पर प्रतिबंध है। जनसामान्य की सुविधा हेतु सूचना दी गई है। कृपया सचेत रहें एवं स्वयं के साथ किसी भी प्रकार की संभावित धोखाधड़ी से बचें। आज्ञा से उपाध्यक्ष, गाजियाबाद विकास प्राधिकरण, गाजियाबाद।
ध्यान देने योग्य बात यह है कि प्राधिकरण की योजना में लोगों ने प्राधिकरण से ही नक्शा स्वीकृत करवा कर आशियाना खड़ा करवाया। आशियाना खड़ा होने के बाद जीडीए के अफसरों के भ्रष्टाचार और गोलमाल की पोल खुली। भ्रष्टाचार की पोल खुलने के बावजूद भ्रष्ट अधिकारियों का बाल भी बांका नहीं हुआ। अलबत्ता स्वामित्व को लेकर विवादित घोषित किए गए सैंकड़ों बेगुनाह भूस्वामियों की गर्दन में ऐसा कानूनी फंदा पड़ गया, जिसकी उन्हें भविष्य में बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है। इन सैंकड़ों खरीददारों का भविष्य अदालती निर्णय पर टिका है। यह बात तो तय है कि जब तक अदालत का निर्णय नहीं आ जाता इन खरीददारों की सांस सांसत में रहेगी।
उल्लेखनीय है कि राजेंद्र त्यागी की ओर से उच्च न्यायालय में दाखिल एक रिट में खुलासा हुआ था कि जीडीए के कुछ अधिकारी व कर्मचारियों ने योजना के 137 भूखंड फर्जी रूप से आवंटित किए थे। यह मामला अदालत में विचाराधीन था कि उसी दौरान फर्जी रूप से आवंटित कुछ भूखंडों पर निर्माण भी हो गया। अदालत ने इस तरह के निर्माण को विधि के विपरित पाते हुए योजना देख रहे इंजीनियर्स को भी दोषियों की कतार में खड़ा कर दिया था। प्रारंभिक जांच में पाया गया कि 26 भूखंडों पर नक्शा स्वीकृत कराए बिना ही भवन निर्माण हो गया। जबकि 40 भूखंडों पर नक्शे के विपरीत अवैध निर्माण किया गया। जांच और आरोप के दायरे में आए अधिकांश अधिकारी और कर्मचारी रिटायर हो गए और अब मरा हुआ सांप उन खरीददारों के गले में है जिन्होंने फजीर्वाड़ा की भेंट चढ़े भूखंडों की खरीद फरोख्त की है। इस संबंध में जीडीए विधि अधिकारी शशि भूषण राय का कहना है कि मामला अदालत में विचाराधीन है। ऐसे में इस प्रकरण पर फिलहाल कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। उन्होंने यह भी माना कि प्राधिकरण में मधुमक्खी के कई ऐसे छत्ते है जिन्हें हाथ लगाने से डर लगता है।