प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी। तृतीयं चंद्रघण्टेति कुष्मांडेति चतुर्थकम्। पंचमं स्कंदमातेति षष्ठं कात्यायनी च।सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति च अष्टमम्।।नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा प्रकीर्तिता।।
दुर्गा सप्तशती के इन श्लोकों के अनुसार दुर्गा माता के नौ स्वरूपों का इस प्रकार वर्णन है
1. शैलपुत्री : पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण पार्वती माता को शैलपुत्री भी कहा जाता है। ये माता वृषभ पर सवार हैं ये दाहिने हाथ में त्रिशूल , बाएं हाथ में कमल धारण करती हैं। इसके वस्त्र धवल है। उनके माथे पर मुकुट है।
2. ब्रह्मचारिणी : दुर्गा मां का द्वितीय स्वरूप ब्रह्मचारिणी हैं। जब दुर्गा मां ने कठोर तपस्या करके द्वारा शिव को पति के रूप में प्राप्त किया था।ब्रह्मचारिणी माता सफेद वस्त्र धारण करती है और इनके बांए हाथ में कमंडल तथा दाहिने हाथ में माला विराजमान है।
3. चंद्रघंटा : माता का तृतीय स्वरूप चंद्रघंटा है अर्थात जिनके मस्तक पर चंद्र के आकार कातिलक है। इनका रंग स्वर्ण के समान चमकीला है, इनका वाहन व्याघ्र है। चंद्रघंटा देवी के 10 हाथ है। इनके दाहिने हाथ में कमल, बाण, धनुष और जपमाला है एवं एक हाथ अभयमुद्रा में है, जबकि बाएं हाथ में त्रिशूल, गदा, तलवार और कमंडल है एवं एक हाथ वरदमुद्रा में है। मुकुट, माला और लालवस्त्र धारण किए हुए है। राक्षसों का विनाश करने के लिए तीव्र आवाज में घंटा ध्वनि करके इन्होंने राक्षसों को मूर्छित कर दिया था।
4. कूष्मांडा : मां भगवती का चौथा स्वरूप कुष्मांडा है। कुष्मांडा का अर्थ है ब्रह्मांड को उत्पन्न करने की शक्ति से सम्पन्न।। माता कूष्मांडा के 8 हाथ है। दाहिने हाथ में कमल, बाण, धनुष और कमंडल है, जबकि बाएं हाथ में चक्र, गदा, माला और अमृतघट है। यह माता लाल वस्त्र और मुकुट धारण किए हुए और व्याघ्र पर सुशोभित है।
5. स्कंदमाता : मां का पांचवा स्वरूप स्कंदमाता है। इनके एक पुत्र का नाम कार्तिकेय है जिसे स्कंद कहा जाता है। इसीलिए वे स्कंद की माता कहलाती हैं। स्कंद माता की गोद में कार्तिकेय विराजमान है। सिंह पर सवार यह माता चार भुजाधारी है। इनके दाएं हाथ में कमल और दूसरे से कार्तिकेय को पकड़ रखा है जबकि बाएं भाग के एक हाथ में कमल और दूसरा हाथ अभयमुद्रा में हैं।
6. कात्यायनी : मां भगवती का छठा स्वरूप कात्यायानी है।। सिंह पर सवार माता कात्यायनी की चार भुजाएं हैं, दाहिनी तरफ का हाथ अभयु मुद्रा में रहता है तो वहीं नीचे वाला हाथ वरमुद्रा में है। बाईं ओर के ऊपर वाले हाथ में मांतलवार धारण करती हैं, नीचे वाले हाथ मे कमल सुशोभित है। यह माता भी लाल वस्त्र धारण करती और सिर पर मुकुट सुशोभित है।
7.कालरात्रि : कालरात्रि मां भगवती का आठवां स्वरूप है । भगवती माता काल कालरात्रि के स्वरूप में विश्व के संकटों का नाश करने वाली हैं इसीलिए कालरात्रि कहलाती हैं। गधे पर सवार माता का रंग नीला और चार भुजाएं हैं। दाहिने ओर के उपर का हाथ अभयमुद्रा और नीचे का हाथ वरमुद्रा में है जबकि बाईं ओर के उपर के हाथ में खड़ग और नीचे के हाथ में वज्र। माता के वस्त्र शिव समान है।
8. महागौरी : मां भगवती के आठवें स्वरूप को महागौरी कहा जाता है इनका संपूर्ण और सबसे भव्य स्वरूप है। कठोर तप करने के कारण जब उनका वर्ण काला पड़ गया तब शिव ने प्रसन्न होकर इनके शरीर को गंगाजी के पवित्र जल से मलकर धोया तब वह विद्युत प्रभा के समान अत्यंत कांतिमान-गौर हो उठा। तभी से इनका नाम महागौरी पड़ा। ये श्वेत वस्त्र और आभूषण धारण करती हैं। बैल पर सवार माता महागौरीके चार हाथ हैं। दाहिनी और का ऊपर वाला हाथअभय मुद्रा में रहता है तो वहीं नीचे वाले हाथ में मां त्रिशूल धारण करती हैं। बाईं ओर के ऊपर वाले हाथमें डमरु रहता है तो नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में रहता है।
9. सिद्धिदात्री : माता का नौवां स्वरूप सिद्धिदात्री है। मां भगवती की पूर्ण श्रद्धा भक्ति के साथ उनकी पूजा करता है वे अपने भक्तों को सभी प्प्रकार की सिद्धि दे देती हैं इसीलिए उन्हें सिद्धिदात्री कहा जाता है। ये माता ये कमल के फूल पर विराजती हैं और सिंह इनका वाहन है।इनकी चार भुजाएं हैं और दाहिनी भुजा के उपर वाले हाथ में चक्र और नीचे वाले हाथ में गदा है जबकि बाईं भुजा के ऊपर वाले हाथ में शंख और नीचे वाले हाथ में कमल सुशोभित है। लाल वस्त्र और मुकुट धारण किए हुए माता के गले में माला सुशोभित है।इस प्रकार माता भगवती अपने सभी स्वरूपों से अपने भक्तों का कल्याण करती हैं।संसार से आसुरी शक्तियों का विनाश करके विश्व को भय मुक्त बनाती हैं।
पंडित शिवकुमार शर्मा ज्योतिषाचार्य एवं वास्तु कंसल्टेंट ,गाजियाबाद