Dainik Athah

नहीं सुलट रहा रहा 80 सीटों का चक्रव्यूह: प्रदेश भाजपा नेतृत्व खुद के बजाय दूसरों पर जिम्मेदारी थोपने की तैयारी में

  • जिलों में संगठन हो चुका है जमींदोज, लेकिन पूरा ठीकरा अफसरशाही पर फोड़ने की तैयारी
  • प्रदेश में उप चुनावों की नहीं हो पा रही तैयारी

अथाह ब्यूरो
लखनऊ। लोकसभा चुनाव 2024 में उत्तर प्रदेश में सभी 80 सीटों पर मतदान फीसद में कमी और 43 सीटों पर भाजपा गठबंधन की हार ने भारतीय जनता पार्टी को नीचे से लेकर ऊपर तक हिलाकर रख दिया है। चुनाव परिणामों की समीक्षा एवं हार के कारण तलाशने के लिए भाजपा ने सभी जिलों में पर्यवेक्षक भेजे, लेकिन उनकी रिपोर्ट के बाद भी कोई नतीजा निकलता नजर नहीं आ रहा है। सभी एक दूसरे पर हार का ठीकरा फोड़ने की तैयारी में है।
भाजपा सूत्रों के अनुसार पर्यवेक्षकों के जिलों में जाने के दौरान कई स्थानों पर भाजपा कार्यकर्ता पर्यवेक्षकों के सामने ही भिड़ गये। इसके साथ ही जो रिपोर्ट सौंपी गई है उसमें 400 पार के नारे, आरक्षण समाप्त करने और संविधान खत्म करने के विपक्ष के प्रचार को जहां मुख्य वजह बताया गया वहीं दूसरी तरफ जिलों में तैनात पुलिस- प्रशासन के रवैये को भी हार का कारण बता रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जिलों में तैनात अधिकारी भाजपा कार्यकर्त्ताओं की सुनते ही नहीं। यह स्थिति थाना- तहसील से लेकर जिलास्तर तक है।
इतना ही नहीं अनेक स्थानों पर जिला संगठनों को निशाने पर लिया गया कि जिलों में संगठन नीचे तक ध्वस्त हो चुका है तथा काम करने वाले कार्यकर्त्ता घर बैठे हैं और दिखावा करने वालों के पास पद और रसूख है। इसके साथ ही अन्य दलों से नये आने वाले नेताओं को निशाने पर लेते हुए कहा गया है कि संगठन के पदाधिकारी भी नयों को अधिक तव्वजो दे रहे हैं जिससे पुराने कार्यकर्ताओं में निराशा का भाव पनप रहा है।
भाजपा सूत्र बताते हैं कि जिलों में जो भी पर्यवेक्षक भेजे गये उन्होंने बंद कमरों में बैठकें की। एक एक कार्यकर्ता से अलग अलग कम ही मिले। यदि जिलाध्यक्षों को समीक्षा के दौरान हटाकर कार्यकर्ताओं से मिला जाता तो स्थिति कुछ और सामने आती। इतना ही नहीं जिन लोगों को अध्यक्षों ने चाहा उनसे ही पर्यवेक्षकों को मिलवाया, जबकि बड़ी संख्या में कार्यकर्ताओं को यह भी पता नहीं चला कि कब पर्यवेक्षक आये और कब बैठक कर चले गये। एक अन्य मुद्दा जो आया वह यह कि कार्यकर्ताओं की भावना के अनुरूप टिकटों का वितरण नहीं किया गया। टिकट ऐसे लोगों को थमाये गये जिनकी जनता में पकड़ नहीं है। जो जीते वे भी भाजपा के साथ ही मोदी- योगी के नाम पर जीत गये, इनका अपना कुछ नहीं था।
सूत्र बताते हैं कि अब स्थिति यह है कि भाजपा संगठन सरकारी अधिकारियों को निशाने पर ले रहा है। रिपोर्ट भी इसी प्रकार की आगे बढ़ाई जा रही है, जबकि संगठन स्तर पर कहां कहां चूक हुई उसे नजरअंदाज किया जा रहा है।

भीतरघात भी रही हार का बड़ा कारण
टिकट वितरण एवं ठाकुरों के साथ ही अन्य बिरादरी की नाराजगी के चलते भीतरघात को भी कारण बताये गये। कई सीटों पर तो प्रत्याशियों ने सीधे पार्टी के भीतर अपने विरोधियों को निशाने पर लिया। कहा गया कि अनेक सीटें तो भीतरघात के कारण भाजपा को हारनी पड़ी।


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