Dainik Athah

प्रचार के मामले में लगातार पिछड़ रहे भाजपा- रालोद के प्रत्याशी

  • दूसरे चरण का चुनाव प्रचार समाप्त होने में 9 दिन शेष
  • केवल सोशल मीडिया के भरोसे कितना होगा इनका बेड़ा पार
  • बागपत से रालोद प्रत्याशी का चुनाव चिन्ह तक नहीं पहुंच पा रहा मतदाताओं तक

अथाह संवाददाता गाजियाबाद/ बागपत। गाजियाबाद और बागपत लोकसभा के चुनाव दूसरे चरण में 26 अप्रैल को मतदान होना है। इसका सीधा अर्थ यह है कि प्रचार के लिए प्रत्याशियों के पास मात्र नौ दिन का समय शेष बचा है। लेकिन दोनों ही लोकसभा क्षेत्रों में यह नजर सा ही नहीं आ रहा कि इन क्षेत्रों में अगले सप्ताह वोट पड़ने है। न तो मतदाताओं में कोई उत्साह देखने को मिल रहा, न कार्यकर्ताओं में और न ही प्रचार जोर पकड़ रहा है।
यदि गाजियाबाद लोकसभा क्षेत्र की बात करें तो यहां पर प्रत्याशियों ने हाड़ तोड़ मेहनत में कोई कसर नहीं छोड़ी हुई। लोकसभा क्षेत्र की सभी सीटों पर भाजपा के विधायक है। संगठन मजबूत स्थिति में है। बावजूद इसके प्रचार के मामले में सभी प्रत्याशी पिछड़ते हुए नजर आ रहे हैं। भाजपा प्रत्याशी जरनल वीके सिंह ने 2019 के चुनाव में यह सीट पांच लाख से ज्यादा मतों से जीती थी।

इस बार भाजपा का दावा जीत का आंकड़ा बढ़ाने का है। सभी विधायक भाजपा के होने के कारण प्रत्याशी और संगठन पूरी तरह से अलग अलग विधानसभा क्षेत्रों में विधायकों पर निर्भर है। विधायकों की रणनीति के हिसाब से प्रत्याशी अतुल गर्ग के कार्यक्रम तय हो रहे हैं।
यदि संगठन को देखा जाये तो संगठन की बागडोर एक मजबूत महानगर अध्यक्ष के पास है। बूथ से लेकर पन्ना प्रमुख तक नियुक्त है और रणनीति के हिसाब से काम चल रहा है। बावजूद इसके प्रचार न होने के कारण भाजपा समर्थक भी यह सोच रहे हैं कि आखिर क्या कारण है कि भाजपा प्रत्याशी का प्रचार कम है। उधर पार्षदों की फौज की बात करें तो यह फौज दिनभर लंबी लंबी हांकने के काम में व्यस्त है। कुछ पार्षद नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं कि केवल बैठकों में बुलाया जाता है, बाकि अलग से कोई जिम्मेदारी नहीं है।

दूसरी तरफ कांग्रेस प्रत्याशी डॉली शर्मा की बात करें तो प्रत्याशी तेजी से जनसंपर्क में व्यस्त है। भाजपा के मुकाबले प्रचार में वह 21 नजर आ रही है। बावजूद इसके कांग्रेस में भी समन्वय का अभाव नजर आ रहा है। सबकुछ कुछ ही लोगों के इर्द गिर्द सिमट गया है। पुराने जिला व महानगर अध्यक्षों की नाराजगी भी दूर हुई नहीं लगती। वहीं पूर्व विधानसभा प्रत्याशियों में सुशांत गोयल का चुनाव से गायब होना अखर रहा है। कांग्रेस को जिला व महानगर अध्यक्ष चुनाव के दौरान नये मिले हैं। दोनों ही पूरी ताकत से लगे हैं। ये भी रणनीतिकारों में शामिल है। कांग्रेस का पूरा जोर अपने एवं सपा के परंपरागत मतदाताओं पर ही है।

अब बसपा प्रत्याशी नंदकिशोर पुंडीर बसपा में नये हैं। नये आये व्यक्ति की बसपा में क्या हालत होती है यह बसपा में रह चुके लोग भली भांति समझ सकते हैं। सूत्रों के अनुसार बसपा प्रत्याशी एक पुराने जिलाध्यक्ष एवं वर्तमान में वरिष्ठ पदाधिकारी के बाहुपाश से ही नहीं निकल पा रहे हैं।

अब बात करें बागपत लोकसभा क्षेत्र की तो यहां पर रालोद- भाजपा के प्रत्याशी राजकुमार सांगवान की छवि के आधार पर गठबंधन मैदान में है। लेकिन यहां पर भी तीनों प्रमुख दलों के प्रत्याशी चुनाव प्रचार में पिछड़ रहे हैं। यहां पर राजग प्रत्याशी के चुनाव चिन्ह का मामला पेचिदा होता जा रहा है। बड़ी संख्या में मतदाता अब भी ईवीएम में कमल का फूल ही ढूंढेंगे। रालोद प्रत्याशी का चुनाव चिन्ह भी मतदाताओं के पास तक नहीं पहुंच सका है। कार्यकर्ता पैसे के अभाव का रोना भी रो रहे हैं। कहते हैं हमारा प्रत्याशी गरीब है और पैसे खर्च नहीं कर पा रहा।

दूसरी तरफ सपा प्रत्याशी अमरपाल शर्मा की छवि उनके आड़े आ रही है। उनका पूरा जोर ब्राह्मण समाज और अल्पसंख्यकों पर है। जबकि प्रत्याशी का प्रचार भी फीका चल रहा है। अब लोग पूछने लगे हैं कि जब चुनाव प्रचार समाप्त हो जायेगा तब क्या प्रत्याशी प्रचार करेंगे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *