गोवर्धन का त्यौहार कल 14 नवंबर को मनाया जाएगा।क्योंकि कल 14 नवंबर को कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा 14:36 तक बजे तक है। शास्त्रीय वचनानुसार जब कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा उदयकालीन और मध्याह्न व्यापिनी हो तो गोवर्धन का पर्व उसी दिन मनाया जाता है। 14 नवंबर को यद्यपि मंगलवार को अनुराधा होने पर बज्र योग बनता है।
लेकिन 28 लोगों में से शोभन योग कल 13:55 तक है जो गोवर्धन पूजा के लिए बहुत ही श्रेष्ठ है।
इसलिए प्रातः काल सूर्य उदय से लेकर लगभग 2:00 बजे तक गोवर्धन पूजा की जाएगी।
गोबर से घरों में गोवर्धन अथवा कृष्ण जी की मूर्ति बनाते हैं।
परिवार के सभी लोग बैठकर गोवर्धन की पूजा और परिक्रमा करनी चाहिए। इस दिन में गोधन के संरक्षण व उनकी सेवा करने का संकल्प भी लेना चाहिए।
गोवर्धन भारत का प्रमुख त्यौहार है क्योंकि भारत कृषि प्रधान देश है। गोवर्धन का अर्थ होता है कि गौ वंश की वृद्धि और संरक्षण का पर्व ।
कृषि आधारित खेती में गौधन का बहुत ही महत्व था।
गोकुल में लाखों गाएं थी ।उन दिनों भारत विश्व गुरु था और दूध घी की नदियां बहा करती थी। भगवान कृष्ण ने गोकुल वासियों से इंद्र की पूजा को बंद करके गोवर्धन पर्वत की पूजा कराई थी ,क्योंकि गोवर्धन पर्वत पर ही गायों के लिए चारा पर्याप्त मात्रा में था ग्वाल बालों को ईंधन आदि के लिए गोवर्धन पर्वत बहुत ही महत्वपूर्ण था।
जब इंद्र के कोप से ब्रज क्षेत्र डूबने लगा था तो भगवान कृष्ण ने ग्वालों की सहायता से गोवर्धन पर्वत को अपने हाथों पर उठाकर गोकुल वासियों की जल प्रलय की रक्षा की थी।
इसी दिन बलि पूजा करने का भी विधान है। कहा जाता है कि वामन भगवान ने इसी दिन दैत्यराज और ईश्वर भक्त महाराज बलि से तीन पग धरती मांग ली थी भगवान वामन ने अपने दो पग से धरती और स्वर्ग नाप लिए थे ।तीसरा पग उनके सिर पर रखकर उन्हें पाताल का स्वामी बना दिया था ।
भैया दूज, यम द्वितीया और चित्रगुप्त विश्वकर्मा पूजा 15 नवंबर को मनाई जाएगी
कार्तिक शुक्ल द्वितीया बुधवार को ज्येष्ठा नक्षत्र है।
यह योग ध्वांक्ष योग बनाता है। 27 योगों में 12:06 बजे तक अतिगंड योग भी है।
यद्यपि यह योग शुभ नहीं होता है ।किंतु 12:00 बजे के बाद 1:30 बजे तक राहुकाल है। उसके बाद सुकर्मा योग की उपस्थिति में भैया दूज का त्यौहार मनाया जाएगा।
प्रातः काल सूर्योदय से 9:30 बजे तक लाभ और अमृत के चौघड़िया में भैया को तिलक करना शुभ रहेगा। इसी दिन चित्रगुप्त अर्थात विश्वकर्मा पूजा का भी दिन है।
यद्यपि कन्या संक्रांति लगभग 17 सितंबर को विश्वकर्मा जयंती मनाने का प्रचलन है। लेकिन परंपरागत लोग एवं अपने पूर्वजों की रीति नीति के अनुसार इसी दिन विश्वकर्मा की पूजा करते हैं।
आचार्य शिवकुमार शर्मा
आध्यात्मिक गुरु एवं ज्योतिषाचार्य गाजियाबाद