- गाजियाबाद में इंडिया गठबंधन से भाजपा को नहीं होने वाली परेशानी
- जद यू के वरिष्ठ सलाहकार केसी त्यागी में है बड़ी लाइन खिंचने की कुव्वत
- केसी के लिए दलीय सीमा को तोड़ सकते हैं लोग
अशोक ओझा
गाजियाबाद। इन दिनों सभी राजनीतिक दल लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारियों में लगे हैं। इसके साथ ही गाजियाबाद लोकसभा सीट जिसे भाजपा का मजबूत गढ़ कहा जाता है को कैसे भेदा जाये इसके ऊपर सभी दलों में विचार विमर्श चल रहा है। यह माना जा रहा है कि भाजपा इस बार भी शायद ही कोई बदलाव करें। इस स्थिति में विपक्षी गठबंधन इंडिया को ऐसे चेहरे की तलाश है जो भाजपा और उसके प्रत्याशी को टक्कर ही न दे, बल्कि जीत की राह पर गठबंधन बढ़े। इसमें एक नाम उभर कर सामने आ रहा है वह जनता दल यू के राष्टÑीय सलाहकार एवं मुख्य प्रवक्ता केसी त्यागी का। यह माना जा रहा है कि यदि केसी त्यागी चुनाव लड़े तो एक तीर से कई निशाने साधे जा सकते हैं। केसी त्यागी का लाभ इंडिया गठबंधन को गाजियाबाद ही नहीं पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मिल सकता है। इसका कारण त्यागी समाज पर उनकी मजबूत पकड़ होना है।
बता दें कि कभी भाजपा का मजबूत गढ़ रही गाजियाबाद लोकसभा (तब हापुड़ लोकसभा) से लगातार चार बार सांसद रहे डा. रमेश चंद तोमर को हराकर सुरेंद्र प्रकाश गोयल ने यह सीट कांग्रेस की झोली में डाल दी थी। इसके बाद भाजपा के राष्टÑीय अध्यक्ष पद पर रहते हुए राजनाथ सिंह ने सुरेंद्र प्रकाश गोयल को हराकर गाजियाबाद सीट वापस कांग्रेस से छीनी। जिस समय राजनाथ सिंह चुनाव लड़े थे उस समय गाजियाबाद नयी लोकसभा थी। 2009 में जब राजनाथ सिंह ने गाजियाबाद से चुनाव लड़ने की ठानी उस समय भाजपा कार्यकर्ताओं ने किसी सुरक्षित सीट से चुनाव लड़ने की सलाह उन्हें दी थी, लेकिन उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा था मजबूत सीट से तो कोई भी चुनाव लड़ लें, लेकिन हारी हुई सीट को जीतना उनका लक्ष्य है। उन्होंने उस चुनाव में करीब एक लाख वोटों से जीत दर्ज की। इसके बाद जब राजनाथ सिंह ने अटल जी की लखनऊ सीट से चुनाव लड़ना शुरू किया तब से लगातार दो बार से पूर्व थल सेनाध्यक्ष जनरल वीके सिंह यहां से जीत दर्ज करते रहे हैं।
जैसी कि उम्मीद है इस बार भी भाजपा जनरल वीके सिंह को तीसरी बार मैदान में उतारेगी। गाजियाबाद सीट भाजपा का मजबूत गढ़ कही जाती है, ऐसे में जब भी कोई भाजपा के विरोध में चुनाव लड़ता है उस समय वह केवल खानापूर्ति के लिए। लेकिन इस बार विपक्षी दल इंडिया गठबंधन इस सीट से किसी मजबूत प्रत्याशी को मैदान में उतारकर भाजपा को पटखनी देना चाहती है। इस पर गठबंधन में जनता दल यू के वरिष्ठ सलाहकार एवं मुख्य प्रवक्ता केसी त्यागी के नाम पर विचार विमर्श चल रहा है। केसी त्यागी 1989 में गाजियाबाद से लोकसभा सदस्य रह चुके हैं। इसके बाद वे बिहार से राज्यसभा सदस्य रह चुके हैं। केसी त्यागी चाहे जहां हो यदि शनिवार और रविवार को वे दिल्ली में है तो रविवार का दिन अब भी गाजियाबाद को ही देते हैं।
इतना ही नहीं सभी त्यौहारों पर भी दो से तीन दिन अपने गाजियाबाद निवास पर बिताते हैं। इस दौरान पूरे जिले से उनके चाहने वाले उनके निवास पर जुटते हैं। मूल रूप से मोरटा के रहने वाले केसी त्यागी का गाजियाबाद एवं यहां के लोगों से जुड़ाव कभी न खत्म होने वाला है।
गठबंधन के सूत्रों पर भरोसा करें तो कांग्रेस को जहां केसी त्यागी से परहेज नहीं है, वहीं उत्तर प्रदेश में मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव उन्हें अपना अभिभावक मानते हैं। ठीक यहीं स्थिति रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी की है। केसी त्यागी किसी समय चौधरी चरण सिंह एवं बाद में मुलायम सिंह यादव के खास रह चुके हैं।
केसी त्यागी के नाम पर भाजपा में भी हो सकता है भीतरघात
अपने व्यवहार एवं संपर्क के कारण केसी त्यागी भाजपा एवं संघ परिवार के लोगों के भी नजदीक है। आपातकाल में वे भाजपा एवं संघ कार्यकर्ताओं के साथ जेल में रहे थे। इतना ही नहीं वे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से भी बेहद प्रभावित है। वे समय समय पर उनका स्मरण भी करते रहते हैं। मॉरीशस में आयोजित विश्व हिंदी सम्मेलन में उन्होंने कहा था ‘अटल जी हमारे दल के नेता नहीं है, लेकिन दिलों के नेता है’। ठीक ऐसे ही केसी त्यागी दलों के नहीं दिलों के नेता है। यदि गठबंधन ने उनके ऊपर दांव लगा दिया तो निश्चित ही भाजपा को परेशान हो सकती है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के त्यागी समाज को भी कर सकते हैं गठबंधन के पक्ष में एकजुट
वर्तमान समय के हालात को देखा जाये तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में त्यागी समाज कुछ समय से भाजपा से विभिन्न मुद्दों पर खफा चल रहा है। चुनाव तक यदि त्यागी समाज को संतुष्ट नहीं किया गया तो केसी त्यागी के मैदान में आने का लाभ इंडिया गठबंधन को पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में लाभ मिल सकता है। पूरे पश्चिम के त्यागी समाज के साथ ही अन्य जातियों पर भी उनकी मजबूत पकड़ है।