सर्वोच्च न्यायालय ने कहा ओबीसी आयोग 3 माह में पूरा करें काम
कोई भी बड़ा नीतिगत निर्णय नहीं लिया जा सकेगा
सर्वोच्च अदालत ने कहा तीन माह देरी से करवायें चुनाव
अथाह ब्यूरो
नयी दिल्ली। उत्तर प्रदेश में निकाय चुनावों के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ के आदेश पर रोक लगाते हुए पिछड़ा वर्ग आयोग को तीन माह में अपना काम पूरा करने को कहा है। इसके साथ ही न्यायालय ने कहा कि इस दौरान कोई भी बड़ा नीतिगत निर्णय नहीं लिया जा सकेगा।
बता दें कि स्थानीय निकाय चुनावों की अधिसूचना रद्द करने के उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ उत्तर प्रदेश सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में निकाय चुनावों पर सरकार की मसौदा अधिसूचना को रद्द कर दिया गया था। अब सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाते हुए निकाय चुनाव तीन महीने देर से कराने की अनुमति दी है। इसके साथ ही कहा गया कि आयोग तीन महीने के अंदर अपना काम पूरा करने की कोशिश करे।
अदालत में राज्य सरकार ने अपनी याचिका में कहा था कि उच्च न्यायालय पांच दिसंबर की मसौदा अधिसूचना को रद्द नहीं कर सकता है, जो अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों के अलावा अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) के लिए शहरी निकाय चुनावों में सीटों के आरक्षण का प्रावधान करता है। एडवोकेट आॅन रिकॉर्ड रुचिरा गोयल के माध्यम से दायर अपील में कहा गया था कि ओबीसी संवैधानिक रूप से संरक्षित वर्ग है और उच्च न्यायालय ने मसौदा अधिसूचना को रद्द करने में गलती की है। दरअसल, उत्तर प्रदेश सरकार ने हाल ही में शहरी स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी को आरक्षण प्रदान करने के लिए सभी मुद्दों पर विचार करने के लिए पांच सदस्यीय आयोग नियुक्त किया है।
इससे पहले उत्तर प्रदेश सरकार ने पांच दिसंबर को निकाय चुनाव के लिए आरक्षण की अधिसूचना जारी की थी। इसके इसके खिलाफ उच्च न्यायालय में याचिका दायर की गई। कहा गया कि यूपी सरकार ने आरक्षण तय करने में सर्वोच्च न्यायालय के ट्रिपल टेस्ट फॉमूर्ले का पालन नहीं किया है। इस पर उच्च न्यायालय ने आरक्षण की अधिसूचना रद्द करते हुए यूपी सरकार को तत्काल प्रभाव से बिना ओबीसी आरक्षण लागू किए नगर निकाय चुनाव कराने का फैसला दे दिया था। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद जल्द ही वित्तीय दायित्वों को लेकर अधिसूचना जारी हो सकती है। अदालत ने कहा कि इस दौरान कोई भी बड़ी नीतिगत फैसला नहीं लिया जा सकता है।