मुझे धन्न और अन्न की नहीं जातियों में बंटे सनातन के एक होने की भिक्षा चाहिये: स्वामी दीपांकर
अथाह संवाददाता
गाजियाबाद। मुझे भिक्षा धन अन्न की नहीं, मुझे भिक्षा चाहिये जातियों में बंटे सनातन को एक होने की। यह कहना था अंतर्राष्टÑीय ध्यान योग गुरु स्वामी दीपांकर का। वे गाजियाबाद के विजयनगर में भिक्षा यात्रा के पड़ाव पर उमड़े सनातनियों को संबोधित कर रहे थे। स्वामी दीपांकर ने कहा कि सनातन को आज एक करने की आवश्यकता है। जातियों में सनातनियों के बंटने से समाज का भला नहीं हो सकता। जिस प्रकार हजारों वर्ष पूर्व जातियों के नाम पर सनातनियों में बंटवारा किया गया था उसके परिणाम हम आज तक भुगत रहे हैं। यदि सभी सनातनि एक नहीं हुए तो आने वाले समय में अपने क्षुद्र स्वार्थ के लिए राजनीतिक लोग हमें आपस में लड़ाते रहेंगे।
स्वामी दीपांकर ने कहा कि उन्होंने एक व्रत लिया है सनातनियों को जातिवाद के जहर से दूर कर एक करने का। उन्होंने कहा कि इस अभियान में उन्हें जिस प्रकार समर्थन एवं सहयोग प्राप्त हो रहा है उससे लगता है कि आने वाले समय में वे अपने इस उद्देश्य में सफल हो जायेंगे। जब स्वामी दीपांकर ने सनातनियों से भिक्षा में सनातन के होने की भीख मांगी तो पूरा जनसमूह उन्हें भिक्षा देने के लिए उमड़ पड़ा। उन्होंने सभी से कहा जातियों में बंटने से सनातन को जितना नुकसान हुआ है उतना तो मुगलों एवं अंग्रेजों ने भी नहीं किया। उन्होंने कहा जब सभी सनातनी एक हो जायेंगे तभी उनकी यात्रा रूक सकेगी।