आरक्षण को लेकर हर दल के नेताओं में नजर आ रही है बेचैनी
अशोक ओझा
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में नगर निकाय चुनाव के लिए डुगडुगी काफी पहले ही बज चुकी है। लेकिन पूरे प्रदेश के राजनीतिज्ञों के साथ ही चुनाव लड़ने के इच्छुक लोगों को वार्ड से लेकर महापौर तक के पदों के आरक्षण का इंतजार है। यह इंतजार उनके लिए लंबा होता जा रहा है। लेकिन इस बार वार्डों के साथ ही महापौर एवं अध्यक्ष पदों का आरक्षण राजनीतिज्ञों को चौंकाने वाला हो सकता है।
दैनिक अथाह ने सूत्रों के हवाले से आठ नवंबर के अंक में प्रमुखता से यह खबर प्रकाशित की थी कि आरक्षण के लिए अभी इंतजार करना होगा। इसका कारण यह है कि महापौर पदों के साथ ही नगर पालिका परिषदों एवं नगर पंचायतों के अध्यक्ष पदों का आरक्षण तय करने का काम तेजी से चल रहा है। स्थिति यह है कि आरक्षण तय करने में लगे अधिकारियों एवं कर्मचारियों के सार्वजनिक अवकाश भी रद्द कर दिये गये हैं। हालत यह है कि नगर विकास विभाग के मुखिया अर्थात मंत्री से लेकर विभाग के प्रमुख सचिव एवं शासन के आला अफसरों की नजरें आरक्षण पर पूरी तरह से टिकी हुई है।
सूत्रों की मानें तो आरक्षण अपने मनमाफिक करवाने की जुगत में लगे नेता तो दूर इन नेताओं के आकाओं (बड़े नेताओं) तक को यह आभास नहीं होने दिया जा रहा है कि किस महानगर के महापौर एवं किस नगर पालिका अथवा नगर पंचायत का आरक्षण क्या होगा। पूरा काम गोपनीय तरीके से चल रहा है। यदि सूत्रों की मानें तो इस बार महापौर पदों के साथ ही अध्यक्षों के आरक्षण चौंकाने वाले हो सकते हैं। अब से पूर्व यह होता आया है कि नगर विकास विभाग में अंदर तक पहुंच रखने वाले बड़े नेता अथवा उच्चाधिकारियों को पहले से ही भनक लग जाती थी कि कहां का क्या आरक्षण होने जा रहा है। इसके बाद दावपेंच चले जाते थे। यह उदाहरण पूर्व में देखने में भी आया था।
प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ की जीरो टोलरेंस की नीति पर इस बार काम किया जा रहा है। ऐसे में कोई छेड़छाड़ कर सके इसकी गुंजाइश न के बराबर है। सूत्रों का यह दावा अवश्य है कि इस बार महापौर पदों के साथ ही नगर पालिका परिषदों एवं नगर पंचायत अध्यक्ष पदों का आरक्षण चौंका सकता है। इससे अब तक चुनाव लड़ने के लिए जी जान लगा रहे नेताओं के अरमानों पर पानी भी फिर सकता है। इसके साथ ही मुख्य बात यह भी है कि नगर निगमों के साथ ही नगर पालिका परिषदों एवं नगर पंचायतों ने अपने अपने जिलाधिकारियों के माध्यम से जो प्रस्तावित आरक्षण भेजा है उसमें भी बदलाव देखने को मिल सकता है। इस बात को प्रदेश के अनेक जिलाधिकारी भी निजी बातचीत में स्वीकार करते हैं। अब देखिये आगे आगे होत है क्या।