जब निराले तेरे खेल, पढ़े फारसी बेचे तेल
मंडलायुक्त से हुई शिकायत तो खुली घोटाले की पोल
आलोक यात्री
गाजियाबाद। जीडीए को जिसने भी काजल की कोठरी कहा सही कहा है। भ्रष्टाचार की बोतल से हर दिन निकला एक नया जिन्न घोटाले की एक नई इबारत की ओर ध्यान खींचता है। वैशाली आवासीय योजना में भवन संख्या 103 व 109 के घपले के जिन्न का मामला अभी सुलटा भी नहीं है कि भ्रष्टाचार की बोतल से एक नया जिन्न और प्रकट हो गया। वैशाली सेक्टर-4 के एक भूखंड के एक नहीं दो आवंटी सामने आए हैं। एक ही भूखंड के दो आवंटियों के मामले ने जीडीए के अधिकारियों को भी हैरत में डाल दिया है। यदि मंडलायुक्त की फटकार न लगती तो ढाई दशक से भ्रष्टाचार की बोतल में पड़ा यह जिन्न न तो बोतल से बाहर आ पाता और न ही भ्रष्ट बाबूओं के इस कारनामे की पोल खुलती।
अब आते हैं खबर पर। नब्बे के दशक में जीडीए की वैशाली आवासीय योजना हॉट केक की तरह बिक रही थी। जानकारी में आया है कि पटना के ब्रजमोहन सिंह ने योजना में भूखंड के लिए आवेदन किया था। दूसरी तरफ इसी नाम से दिल्ली निवासी ब्रजमोहन सिंह ने भूखंड के लिए आवेदन किया था। क्या हुआ? कैसे हुआ? यह रहस्य तो फाइलों की पड़ताल से ही उजागर होगा। लेकिन यह जानकारी जरूर मिली है कि दिल्ली वाले ब्रजमोहन सिंह के नाम योजना में भूखंड आरक्षित हो गया। जानकारी में यह भी आया है कि पटना वाले ब्रजमोहन सिंह ने भूखंड लेने के लिए उत्तर प्रदेश में मंत्री रहे एक रसूखदार व्यक्ति से सिफारसी चिट्ठी लिखाई थी। जिसके चलते उन्हें भी भूखंड आरक्षित हो गया था।
यह वह दौर था जब जीडीए की विभिन्न योजनाओं की देय राशि निर्धारित बैंकों की देश की किसी भी शाखा में जमा करवाई जा सकती थी। एक ही नाम के दोनों आवंटी विभिन्न बैंकों में आरक्षित राशि के अलावा समय-समय पर अन्य देयता भी बैंक में जमा कराते रहे। इसी दौरान जीडीए ने ब्रजमोहन सिंह के नाम एक भूखंड आवंटित कर दिया। यह भूखंड किस ब्रजमोहन सिंह के नाम आवंटित था? यह किसी को पता नहीं था। बहरहाल सेक्टर-4 वैशाली में 110 मीटर क्षेत्रफल का भूखंड संख्या-588 ब्रजमोहन सिंह के नाम आवंटित हो गया। संभव है जीडीए द्वारा इसकी जानकारी दोनों ही आवंटियों को दी जाती रही होगी। क्योंकि दोनों ही आवंटी अपनी- अपनी देयता बैंक में जमा करते रहे। 1998 में दिल्ली वाले ब्रजमोहन सिंह ने समस्त राशि का भुगतान कर भूखंड की रजिस्ट्री अपने नाम करवा ली और उस पर भवन भी बनवा लिया। रजिस्ट्री के बाद प्रकरण बंद होने से पहले मामले में एक पेंच फंस गया। वर्ष 1992 में पटना वाले ब्रजमोहन सिंह ने दिल्ली कनॉट प्लेस की ओरिएंटल बैंक आॅफ कॉमर्स शाखा में भूखंड की देयता के बकाया 94 हजार रुपए ड्राफ्ट के रूप में जमा कर दिए।
जानकारी में आया है कि पटना वाले ब्रजमोहन सिंह ने पैसे जमा होने के बावजूद भूखंड पाने के लिए जीडीए में कई चक्कर लगाए। रसूखदारों की सिफारिशें भी लगाईं। कुछ न हुआ तो हार कर रिफंड की मांग कर दी। 15 साल तक रिफंड की उनकी फाइल जीडीए में धक्के खाती रही। कहते हैं समय बड़ा बलवान होता है। जिस रसूखदार सियासी नेता की सिफारिश पर उन्हें भूखंड आरक्षित हुआ था उन्हीं का पुत्र उत्तर प्रदेश के मंत्रिमंडल में मंत्री बन गया। पटना वाले ब्रजमोहन सिंह के रिफंड का मामला मंत्री जी के पास पहुंचा तो उनके गरमाने पर 2007 में 94 हजार रुपए की राशि उन्हें रिफंड कर दी गई।
यहां चौंकाने वाली बात यह है कि डुप्लीकेट आवंटन की गलती सामने आने के बाद भी मामले की न तो जांच बैठी न ही पुलिस में एफआईआर हुई। फाइल चुपचाप रिकॉर्ड में जमा हो गई। जबकि यहां यह सवाल उठना चाहिए था कि 94 हजार रुपए कौन पी गया? 15 साल बाद यह सवाल तब उठा जब हाल ही में दिल्ली वाले ब्रजमोहन सिंह का पुत्र भूखंड का म्यूटेशन अपने नाम करवाने जीडीए पहुंचा। उसे बताया गया कि भूखंड पर करीब 6 लाख रुपए की देयता निकल रही है। यह देयता क्यों निकल रही है? यह जानकारी मिलने के बाद से अधिकारियों के पैर तले से जमीन खिसक गई। जानकारी में आया है कि निस्तारण के लिए यह प्रकरण मेरठ मंडलायुक्त के समक्ष जा पहुंचा। देखना यह है कि इस प्रकरण में जीडीए के बाबूओं के भ्रष्टाचार का ऊंट अब किस करवट बैठता है?